Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ नवम अध्ययन श्रमणोपासक नंदिन पिता पवमस्स उक्खेयो । एवं खलु अंन्! तेणं काल णं तेणं ममएणं मावस्थी णयरी कोहए बेहए जियसत्तुराया। तत्थ णं मावथीए णयरीग गंदिणीपिया णामं गाहावई परिषसह, अडः चत्तारि हिरण्णकोडीओ णिहाणपडत्ताओ चत्तारि हिरणकोडीओ बुद्धिपउत्ताओ सत्तारि हिरणकोडीओ पवित्थापउत्ताओ चत्तारि बया दसगोसाहस्सिएणं धएणं, अस्सिणी भारिया | सार्मा ममोमंद. जहा आणंदो महेव गिहिघम्म पहिचज्जा । सामी वहिया विहरह। अर्थ-हे जंबू ! उस समय बावस्ती नगरी के बाहर कोष्टक नामक उद्यान पा। जितशत्र राजा था। उस धावस्ती नगरी में 'नदिनीपिसा' नामक गावापति रहा करता था, जो माढ्य यावत् अपराभूत पा। उसके पास चार करोड़ स्वर्ण-मद्राएं भण्डार में, चार करो व्यापार में, तया चार करोड़ को घर-बिसरी श्री । चार गो बज थे । उनकी मार्या का नाम 'अश्विनी' था। मगवान महावीर स्वामी श्रावस्ती पधारे । आनन्द की मोति नन्विनीपिता ने भी श्रावधर्म स्वीकार किया। भगवान जनपद में विचरने लगे। नाणं से पंदिीपिया समणांचासए जाए जाब विहगा। नगणं नम्म णदिणी पियरम ममणोवालयस्म पहाहि सीलन्चयगुण जाव मात्रमाणास्म चाइस मंबच्छराई घड़कनाई नहेब जेमु पुत्तं ठवा. धम्मपणपत्ति धीमं वामाई परिगणगं णाणत्त अरुणगवे विमाणे उत्रबाओ । महाविदहे वासे मिजिनहित । णिक्वेयो । ॥ मत्तमरस अंगरम उवामगदमाणं णवमं अज्झयणं ममतं ॥ ..

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142