Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ जमणोपासक महाशतक घोष बारह भार्याओं के पीहर वालों में एक-एक करोडवर्ण-मा सपा बस हजार गायों का एक-एक प्रज दिया था। विवेचन- संकसापो पाब्द का प्रपं टीका में-'संकसानो' तिकात्येन द्रव्यमान विशेषेण' मास्ताः संकाप्त्याः' किया है । अर्थ में लिखा है तथ्य नापने का कांस्य नाम का पात्र विशेष, जिसमें बत्तीस सेर बजन समा सकता है । पूज्यश्री अमोणकऋषिजी म. सा. ने 'संकसापो'का प्रपं नहीं किया है । 'कोलरियायो' का अर्थ है-'पीहर मे ।' तेणे काले ण तेणं समपर्ण सामी समोसदे, परिसा जिग्गया, जहा आणको तहा जिग्गाइनहेष साधयधम्म पडिवज्जा। णवरं अह हिरणकोडीओ संकसाओ उरुचाए । श्रवण, रेवई पामोक्वाहिं तेरसहिं भारिणाहिं अपसेस मेहुणविडि पच्चालाई । सेल का सोना का मारूवं अभिग्गई अभिगिण्हइ कल्लाकस्लि च णं कप्पड़ मे ये वोणियाए कंसपाईए हिरण्णभरियाए संदवहरित्तए । नए णं से महासयए समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरदातए णं समणे भगवं महावीरे पहिया जणषयविहारं विहरइ । अ- उस समय राजगह मगर के गुणसोल उद्यान में अमन भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद धर्मकपा सुनने के लिए गई, मानवमी की भाति महाशतकजी ने श्रावक के बारह व्रत स्वीकार किए । विशेष यह कि आठ करोड़ मण्यार में, आठ करोड व्यापार में और आठ करोड़ की घरबिखरो 1 गौमों के माठ बज का परिमाण किया। रेवती मावि तेरह पस्तियों के अतिरिक्त शेष मेघन का प्रत्याख्यान किया। सवा यह अभिग्रह लिया कि " में कल से निस्य दो प्रोण कांस्यपात्र मरे (एक प्रोण सोलह खेर के लगभग होता है, इस प्रकार बत्तीस सेर) सोने से अधिक का व्यापार नहीं करूंगा।" व्रत धारण करने से महाशतक 'श्रमणोपासक' हो गए। वे बीब-अजीब को जानने वाले यावत् साधु-साध्वियों को प्रासुक-एषणीय आहार-पामी बहाने वाले हो गए। तत्पश्चात् कमी भगवान जमपत्र में विचरने लगे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142