Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 119
________________ श्री उपासकवांग भूब कामासक्त रेवती की लशंस योजना तए णं तीसे रेवईए मारियाए गाहावहाए अण्णया कयाइ पुन्यरत्तावरत्तकालसमयसि कुडुंध जाव इमेयारूये अज्झस्थिए ४–एवं खल्लु अहं मासिं दुवालसण्डं मवत्तीणं विघाएणं णो संचाएमि महासयएणं समणोवासएणं सद्धिं उरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुजमाणी विहरिस्तए । # सेयं खलु ममं एपाओ दुवालसधि सवत्तियाओ अग्गिप्पओगेणं या सत्थप्पओगेणं वा विसापओगेणं वा जीवियाओषधरोविसा एयासिं एगमेगं हिरपणकोडिं एगमेगं वयं सपमेव उद. संपज्जित्ताणं महासयएणं समणोषासएणं सद्धिं उरालाई जाप विहरित्तए । एवं संपेहेर, संहिता तासि खुवासलण्हं सवस्तीणं अंतराणि य छिहाणि य विवराणि य पडिजागरमाणी विहरह। अर्थ- एफबार मध्यरात्रि के समय रेवतो गापापल्ली को कुटम्स जागरणा करते हए विचार हुआ कि “इन बारह सोतों के कारण मैं महाशतक श्रमणोपासक के साथ यथेच्छ कामभोग नहीं भोग सकती । अतः मेरे लिए यह उचित होगा कि इन बारह हो सोतों को अग्निप्रयोग से, शस्त्र द्वारा या विष द्वारा जीवन-रहित कर दूं और इनका एक-एक करोड़ स्वर्ण तथा गोवज अपने अधीन कर के महाशतक के साथ निविघ्न मानवीय काममोगों का उपभोग कहें।" ऐसा मनोसंकल्प कर के रेवती उन बारह सोतों के छिद्रान्वेषण करने लगी। रेवती ने सपत्नियो की हत्या कर दी नए णं सा रेवई गाहावी अण्णया कयाइ तासि दुवालमण्डं सवप्तीर्ण अंगरं जाणिता छ मवत्तीओ सत्यापओगेणं उद्दवेश, उइयत्ता हसवत्तीओ बिमापओगेण उहवेह उत्रवेत्ता तासि दुवालसहं सबत्तीणं कोलघरि गमेगं हिरण्णकोहि एगमेगं वयं सयमेव पडियज्जइ, पडिज्जिस्ता महासयएणं समणोबासरण मद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरह ।

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