Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 112
________________ 7 में भगवान् से विवाद नहीं कर सकता मैं भगवान् से विवाद नहीं कर सकता तपणं से सालपुत्ते समणोवासर गोमाले मंखलिपुत्तं एवं वपासी" तुम्भे णं देवाणुपिया ! इयच्छेया जाव इयणिउणा इषणयवादी उमएसलद्वा इयविणाणपता । पभू र्ण तुम्मे मम धम्माचरिपूर्ण धम्मोवसरणं भगवया महा वीरेण सार्द्धं विवादं करेत्तर !" "णो तिणट्टे समट्ठे ।" १६ अर्थ - तब सकडालपुत्र ने मंखलिपुत्र गोशालक से कहा कि "हे देवानुप्रिय | जब आप इतने वक्ष, चतुर, निपुण नयवासी, प्रसिद्ध वक्ता एवं विज्ञानवाले हैं, तो क्या आप अमण भगवान् महावीर स्वामी के साथ शास्त्रार्थ कर सकते हैं ?" गोशालक ने उत्तर दिया- "नहीं, में भगवान् से विवाद नहीं कर सकता । में असमर्थ हूँ ।" "से केहेणं देवापिया ! एवं बुच्च — गो खलु पभू तुभे मम धम्मापरिएणं जाव महावीरेणं सद्धिं विवादं करेतर ?” " सहालपुत्ता से जहाणाम केह पुरिसे तरुणे जुग जाव णिउणासिप्पोचगए एवं महं अयं वा एवं वा सूघरं वा कुक्कुर्ड वा तित्तिरं वा वयं वा लावयं वा कोयं वा कविजलं वा वायसं वा पण या हन्यंसि वा पायंसि वा खुरंसि वा पुच्छमि वा पिच्छंसिया सिंगंसि वा विसामि वा रोमंसि था जहिं जहिं गिव्ह नहिं नहिं णिचलं निष्कं धरेइ । एवमेव समणे भगवं महावीरे मम पहूहिं अट्ठेहि य हेऊहि य जाव वागरणेहि य जहिं जा गिoss ता ता णिष्पकुपसिणवागरणं करेह से लेपादेणं सदालपुत्ता ! एवं बुच्च - णो खलु पभू अहं तव धस्मारिएणं जाब महावीरेणं सद्धि विवाद फरेचए ।" अर्थ- सकडालपुत्र ने पूछा - "हे देवानुप्रिय ! आप अमण भगवान् महावीर स्वामी से विवाद क्यों नहीं कर सकते ?" गोशालक ने उत्तर दिया--" हे सकडालपुत्र ! शंसे कोई चतुर शिल्प-कला का

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