Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 98
________________ सकालपुत्र को देव सन्देश भत्तवेयणा कल्लाकहिं तेहिं यहूहिं करएहि य जाच उहियाहि य रायमगंसि विति फरपेमाणा विहरति । अर्थ-सकशालपुत्र आजीविकोपासक के पास एक करोड़ स्वर्ण मद्राएँ निधान में पी, एक करोष व्यापार में तथा एक करोड़ को घर-विखरी थी। दस हजार गायों का एक वज था । उसकी पत्नी का नाम 'अग्निमित्रा' था। पोलासपुर नगर के बाहर उसके मिट्टी के बरतन बनाने की पांच सौ दुकाने थीं । उसने अनेक पुरुषों को भोजन और घेतन दे कर नौकर रख लिया था जो प्रतिदिन यहुत-से छोटे-बड़े लोटे, थालियो, मटके, मटकियां, कलशे, गोलियो, सुराही-कुंने, प्रमाणोपेत घड़े आदि बनाया करते थे। अन्य बहुत-से नौकर थे जो उन बरतनों को राजमार्ग पर चा करते थे। इस प्रकार वह कुंभकार अपना व्यवसाय चलाया करता था। सकडाल पुत्र को देव-सन्देश तए णं से सहलपुत्ते आजीविओवासए अण्णया कयाइ पुष्वावरणहकाल. समयंसि जेणेष अमोगवणिया सणेष उवागच्छइ, उवागच्छित्तागोसालस्स मंखलि. पुत्तस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उपसंपज्जित्ताणं विहरई । सए णं तस्स सहालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एगे देवे अंतियं पाउमवित्था । तए णं से देवे अंतलिक्ख. पढिवण्णे सापेखिणियाइं जाव परिहिए सहालपुत्तं आजीविओवासयं एवं धपासी अर्थ-एक दिन सकडालपुत्र आजीविकोपासक मध्यान्ह के समय अशोकवाटिका में जा कर मंखलिपुत्र गोशालक की धर्मविधि का चिन्तन करने लगा। वहां एक देव आया। घंघरुओं सहित श्रेष्ठ वस्त्रों का धारण करने वाला वह देव माकाश में रह कर मों कहने लगा-- पहिरण देवाणुप्पिया कलं इहं महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे तीयपप्पण्णमणागपजाणए अरहा जिणे केवली सवणू सव्वदरिसी तेलोक्कपहियमाहियपूहरा सदेवमणुयामरस्स लोगस्स भच्चणिज्जे बंदणिज्जे सकारणिज्जे संमाणणिज्जे

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