Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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नियतिवाद पर देव से चर्चा
तर णं से कुण्डकोलिए समणोबासए तं देवं एवं पयासी-"जह णं देवा ! संबरी गोसालरस मंखलिपुत्तस्म धम्मपण्णत्ती-मत्यि उट्ठाणे इ वा जाव णीपया सव्वभावा, मंगुली पं समणस्म भगवओ महाारस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उद्दाणे ६ का साथ अणिपया सम्बभावा । तुमे णं देवा ! इमा एयारूवा दिव्या देबिदी दिव्या देवज्जुई दिब्वे देवाणुभावे किणा लद्धे, किणा पत्त, किणा अभिसमण्णागए, किं उहाणेणं जाब पुरिसक्कारपरक्कमेणं, उदाहु अणुट्टाणेणं अकम्मेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं?
अयं-तब कुण्डकोलिक प्रमणोपाशक ने उस देव से कहा- "हे देव ! आपने कहा कि 'मंलिपुत्र गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति अच्छी है । उसमें उत्थान आदि को नास्ति यावत् समी भाव अनियत हैं और श्रमण भगवान महावीर स्वामी को धर्म-प्राप्ति अच्छी नहीं है, क्योंकि उसमें उत्थान आदि का अस्तिस्य यावत् सभी भाव अनियत बताए गए हैं।' सो हे देव 1 तुम्हें इस प्रकार की यह जो दिव्य देव ऋद्धि, विस्य देव-धुति तथा दिध्य देवानमाग प्राप्त हुआ है, वह उत्थान पावत् पुरुषकारपराक्रम से प्राप्त हुआ है, या अमस्थान, अकर्म यावत् अपुरुषकारपराक्रम से ?"
तए णं से देथे कुण्डको लियं समणोपासयं एवं वपासी-"एवं खलु देवाणुपिया ! मए इमेयारूवा दिवा देविड्ढी ३ अणुहाणेणं जाव अपरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया।"
अर्थ-उस देव ने कुण्डकोलिक ममणोपासक से इस प्रकार कहा- "हे वेवानप्रिय । म यह दिव्य ऋद्धि, पति, देवानुमाग अनुस्पान से यावत अपुरुषकार-पराक्रम से प्राप्त हुआ है।"
देव पराजित होगया तए णं से कुण्डकोलिए समणोषासए तं देवं एवं वयासी-जाणं देवा ! तुमे इमा एयारवा दिया देविड्दी ३ अणुहाणेणं जाय अपुरिसरकारपरक्कमेणं लद्धा