Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ कुण्डकोलिक तुम धन्य हो रख कर वहां से आया था, वहीं चला गया । कुण्डकोलिक तुम धन्य हो से णं काले ण सेणं समरणं सामी समोसटे । सपण से कुंडकोलिए समणो. एसए इमीसे कहाए लरहे इह जहा कामदयो तह णिग्गच्छद जाप पज्जुषासह घम्मकहा ॥ सू. ४१॥ अर्थ-उस समम भगवान महावीर स्वामी कम्पिल्लपुर पधारे । भगवान् के पधारने का वृत्तांत नान कर कुण्डकोलिक बहुत हषित हुए यावत् कामदेव की मांति पर्युपासना करने लगे। भगवान् ने धर्मवेशना फरमाई । "कुण्डकोलियाइ" | समणे भगवं महावीरे कुण्डकोलियं समणोपासयं एवं बयासी-"से गूणं कुण्डकोलिया ! कल्लं तुभं पुष्यावरहकालसमयसि असोग. पणियाए एगे देवे अंतियं पाउम्भवित्था । तए णं से देवे णाममुई च तहेव जाप पद्विगए। से गूणं कुण्डकोलिया! अट्टे समहे?" "इता अस्थि ।” "तं धण्णे सिणं तुमं कुण्डकोलिया ! जहा" कामदेवो। अर्थ-कुण्डकोलिक को संबोधित कर भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया"हे कुण्डकोलिक [ कल दोपहर के समय अशोकवाटिका में तुम्हारे समीप एक देव माया और उसने तुम्हारे उत्तरीय व नामांकित मुनिका उठाई यावत् प्रश्नोत्तरों का वर्णन यावत् लौट गया । हे कुण्डकोलिक ! क्या यह बात सत्य है?" कुण्डकोलिक ने उत्तर दिया--"हां भगवन् ! सत्य है ।" तब भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया"हे कुण्डकोलिक ! तुम धन्य हो" यावत् कामदेव के समान सारा वर्णन जानना। "अजो इ!" समणे भगवं महावीरे सभणे णिग्गंधे य णिग्गंधीओ य आमं. तित्ता एवं वयासी-जा तावं अज्जो गिहिणो गिहिमज्झाषसंता णं अण्णथिए अटेहि य हेहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य णिपट्टपसिणवागरणे

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142