Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 95
________________ ८२ श्री उपासकदारंग सूत्र - ६ करेंति । सक्का पुणा अज्जो समणेहिं णिग्गंथेहि दुबालसंगं गणिपिडगं महिलामाणेहिं अण्णउत्थिया अहि य जाव निष्पट्टपणिचागरणा करित्तए । तए णं समणा पिगंधा यणिग्गंर्थ ओ प समणस्स भगवओ महावीरस्स " तत्ति" एयमटू विण पण पडणेति । एणं से कुण्डको लिए समणोवासए समणं भगवं महाबीरं बंद णमंसर, वंदिता णर्मसित्ता परिणाएं पुच्छर, पुच्छिता अट्टमावियह, अट्टमादिपत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं परिगए । सामी चहिया अणवयविहारं बिहरइ ।। सू. ४२ ॥ अर्थ--सपश्चात् भगवान् महावीर स्वामी ने साधु-साध्वियों को आमंत्रित कर फरमाया - " हे आर्यों 1 गृहस्थावस्था में रहे हुए भावक भी अन्यतिथियों को अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण, आहवान आदि तथा प्रश्नोत्तरों से निरुत्तर कर देते हैं, तो द्वादशांग के अध्येता गणिपिटकघर साधु-साध्वी का तो कहना ही क्या ? उन्हें तो अवश्य ही अन्यतथियों को नियतर करना चाहिए। तब उपस्थित साधु-साध्वियों ने भगवान् के कथन को विनयपूर्वक स्वीकार किया। तत्पश्चात् कुण्ड कोलिक ने वंदना नमस्कार कर भगवान् से प्रश्न पूछ कर अर्थ धारण किए तथा अपने स्थान चले गए । अयन्दा भगवान् बाहर जनपद में विचरने लगे । तए णं तरस कुण्डफोलियस्म समणोवासयरस बहूहिं सील जाब भावेमाणस चोरस संवराई वताई पण्णरसमस्स संचच्छरस्स अंतरा वहमाणस्स अण्णा कयाइ जहा कामदेवो नहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता सहा पोसहसालाए जाव धम्मपण्णत्ति उपसंपज्जिसाणं विहरह । एवं एक्कारस उवासगपरिमाओ तहेब जाव मोहम्मे कप्पे अरुणझए बिमाणे आज अंत काहिइ ॥ सु. ४३ ॥ ॥ सप्तमस्स अंगस्स उषासगदसाणं छट्ठे अज्झयणं समस्तं ॥ अर्थ — कुण्डको लिक श्रमणोपासक बहुत से शोलवत, गुणव्रत यावत् पोषधोपवास तथा तपस्या से आत्मा को भाषित करते हुए रहने लगे। श्रावक-पर्याय के चौदह वर्ष

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