Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री उपासफदशाग सूत्र-६
पत्ता अभिसमण्णागया। जेसिं पं जीवाणं णत्यि उहाणे इ वा पत्ते कि ण देवा ? अह ण देवा | तुमे इमा एयारूवा विव्वा देवड्ढी ३ उहाणेणं जाव परक्कमेणं लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया तो ज बदसि सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपपणत्ती-त्धि उहाणे इ वा जाब णियया सयभावा । मंगुली णं समणस्म भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उहाणे वा जाव अणियया सव्यभाया तं ते मिच्छा।
___ अर्थ-तव कुण्डकोलिक अमयोपासक ने उस देव से कहा- हे देव ! यदि तुमने अनुस्थान यावत् अपुरुषकारपराक्रम से ही विष्य देव-ऋद्धि, धुत्ति और देवानुमान प्राप्त कर लिया, तो जो जीव अनुस्थान यावत् अपुरुषकार-पराक्रम वाले हैं, वे देव क्यों नहीं बने ? अतः हे देव ! तुमने जो यह देव-ऋद्धि प्राप्त की है, वह उत्थान यावत् पुरुषकारपराक्रम से प्राप्त की है, तब भी तुम यह कहते हो कि 'मंखलिपुत्र गौशालक की धमंप्रज्ञप्ति अच्छी । जो सभी भावों को नियत बताती है, तथा भगवान महावीर स्वामी की धर्म-प्रजाप्ति अच्छी नहीं है, जो समी भाषों को अनियत बताती है। तुम्हारा यह पाथन मिथ्या है।
विवेचन-यदि देवमय के योग्य पुरुषार्थ के बिना ही कोई देव बन सकासा हो, तो सभी जीव देव ही क्यों नहीं हो गए ? प्रतः देव का यह कथन बसस्य है कि में बिना उत्थानादि के ही देव बन गया हूँ।
मए णं से देवे कुण्डफोलिएणं समणोबासरणं एवं युत्त समाणे संकिए आव कलससमावणे णो संचाएड कुण्डकोलियरस समणोवासयस किचि पामोक्ख. माइक्खित्तए । णाममुद्दयं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापथए ठवेइ, ठविप्ता जामेव विसिं पाउम्भूए तामेष विसिं पडिगए।
अर्थ-कुण्डको लिक का उपरोक्त कथन सुन कर देव शक्ति हो गया, उसका चित्त भ्रमित हो गया । अतः वह कुण्डकोलिक को कुछ भी प्रस्फुत्तर नहीं दे सका, वरन् स्वयं निरुत्तर पराजित हो गया । नामांकित अंगठी तथा उत्तरीय वस्त्र को पृथ्वीशिलापट्ट पर