Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री पासकदशांग सूत्र-३
अ-लीपिता ममगोपासक को निर्मय देख कर चोषी बार देव ने कहा'हे चुलनीपिता ! मत्यु की चाहना वाले पावत् यदि तु धर्माच्युत न होगा, तो मैं तेरी माता पहा सार्यवाही को, जो तेरे लिए बेव-गम के समान आवरणीय तथा दुष्कर कार्य करने वाली है, तेरे सामने मार कर उबलते हुए तेल की कड़ाई में तल कर मांस-खण्डों से तुसे लिप्त काँगा, जिससे तू आत ध्यान में अकाल मृत्यु प्राप्त करेगा।' तब भी वे निभय रहे।
तए णं से देवे चुलणीपिय समणोवासयं अभीयं जाब विहरमाणं पासा, पासित्ता चुलणीपियं समणोवासयं दोच्चपि तच्चपि एवं पयासी-हं भो पुलणीपिया समणोवासया ! तहेब जाप अवरोविज्ञप्ति । तए णं तस्स चुदणीपिपस्स समणोषासयरस तेणं देवेणं वोच्चपि तच्चपि एवं बुत्तस्स समाणस्स इमेधारूवे अज्झस्थिए ५ अहो णं इमे पुरिसे अणारिए अणारियबुद्धी अणारियाई पाषाई कम्माई समायरइ । जेणं ममं जेई पुत्तं साओ गिहाओ णीणेह, णीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता जहा कयं तहा बितेइ जाच गायं आयचइ । जेणं ममं मजिझम पुत्तं साओ गिहाओ जाव मोणिएण य आयंचई । जेणं ममं कणीयसं पुस्तं साओ गिहाओ महेव जाव आयंचइ । जाऽवि य इमा ममं माया महा सत्यवाही देवपगुरूजणणी दुक्करदुक्करकारिया तं पि च णं इच्छह साओ गिहाओ जीणेत्ता मम अग्गओ घाएत्तए । तं सेयं खलु ममं एवं पुरीसं गिण्डित्तए।
अर्ष-प्रथम बार कहने पर चुलनीपिता श्रमणोपासक निर्मय रहे, तो दूसरो-तीसरी बार उपरोक्त वचन कहे । तव चुलणोपिता ने विचार किया--"अहो! यह पुरुष निश्चय हो अनार्य, अनार्य-वि वाला सपा पाप कर्मों का आचरण करने वाला है। इसने पहले मेरे बड़े पुत्र को मेरे सामने भार साला, फिर मंझले को तथा फिर छोटे को। अब कहीं यह मेरी माता को न मार आले, इसलिए मुझे इसे पकड़ लेना ही उचित है।"
विवेचन-कामदेव सध्ययन में देव ने पिशाच रूप बनाया था, यह! सम्भवतः पुरुष का रूप बना कर उपरोक्त उपसगं किए, इसी कारण चुलनीपिता ने उसे देवकृत उपसगं न समझ कर पुरुषकृत माना 1 पुरुष वैसा कर भी सकता था, इसी कारण वे परहने को अद्यस दृए । यदि उन्हें देव का शाम होता. सो वे अब भी पूर्ववत् वृद रहते, ऐसा अनुमान होता है।