Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
चुलनीपिता श्रमणोपासक
घमंध्यान में लीन देखा, तो देव बहुत कुपित हुआ को घर से लाया। उस पुत्र को आवक के समक्ष
पुत्र
उपरोक्त वचन कहे। तब भी उसे और चुलनोपिता के सब से बड़े ला कर मार डाला और उस के तीन टुकड़े कर के उबलती हुई तेल की कढ़ाई में डाल कर, मांस खण्डों को तला और उस असह्य उष्ण रक्त-मांस से चुलनी पिता के शरीर का सिंचन किया। इससे उसे अत्यन्त मयंकर असह्य वेदना हुई, जिसे घुलनी पिता ने शान्तिपूर्वक सहन किया और व्रत में स्थिर रहा।
1
६३
तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीर्य जाव पास, पासिता दोsपि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - हं भो चुलणीपिया समणोवासया ! अपत्थिय पत्थिया जाव ण भज्जसि तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुतं साओ गिहाओ जीणेमि णीणेत्ता तव अग्गओ घारमि जहा जेठं पुप्तं तव भणड़, तहेव करे, एवं वंपि कणीयसं जाव अहियासे ।
• अर्थ - चुलनीपिता के निर्भयता एवं निश्चलता से वेदना सहन करने पर देव ने दूसरी बार मझले पुत्र को मार डालने की धमकी दी यावत् उबलते हुए रक्त-मांस से उसके बेह का सिंचन किया। तीसरी बार में छोटे पुत्र को यावत् मार कर चूलनीपिता श्रमणोपासक पर डाला, किन्तु चुलनीपिता धर्म से किचित् भी नहीं डिगे ।
तए णं से देवे चुलणीपियं समणोषासयं अभीयं जाब पासर, पासिता चत्थं पि खलणीपियं समणोवासयं एवं बयासी - हं भो चुलणीपिया समणोवासया ! अपत्थिपत्थिया ४ ज णं तुमं जाव ण भज्जसि तओ अहं अज्जा इमा तब भाषा भद्दा सत्थवाही देवयगुरुजणणी पुक्करदुक्करकारिया तं ते साओ गिहाओ णीणेमि जीणेत्ता तव अग्गओ घारमि, धाएता तओ मंससोल्लए करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कहाहयंसि अहहेमि, अहेत्ता तव गायं संसेण य सोणिएण य आयंचामि जहा णं तुमं अहदुहट्टवसट्टे अकाले चैव जीवियाओ ववरोबिज्जसि । तए णं से बुर्ण पिया समणोवासए तेणं देवे णं एवं वृत्तं समाणे अमीर जाव बिहरह