Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 87
________________ भी उपासकदशांग भूत्र श्रमणोपासक ! यदि तुने श्रावक-व्रतों का परित्याग नहीं किया, तो तेरे तीनों पुत्रों को साप्त-सात टुकड़े कर, बनते तेल में अन कर तेरे शरीर पर छिड़कंगा। इससे तू आतंध्यान करता हुआ अकाल मृत्यु से मरेमा ।' धो-तीन बार ऐसा कह कर देव ने वैसा ही किया । इससे चुल्लमातक को असह्य वेदना हुई, जिसे उन्होंने समभावपूर्वक सहन को। ___तए णं से देवे चुल्लसययं समणोबासय चउत्थंपि एवं वपासी--" मो चल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव ण भंजसि नो ते अज्ज जाओ इमाओछ हिरण्णकोडिओ णिहाणपउत्ताओ छ चुटिपउत्ताओ छ पवित्धरपउत्ताओ ताओ साओ गिहाआणीणेमिणीणेता आलभियाए जायरी सिंघाडग जाव पहेसु सवओ समंता विपहरामि । जहा गं तुम अदुहवसट्टे अकाले वेव जीवियाओ ववरोबिजसि । तए णं से चल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समणे अभीए जाव विहरह। तए णं से देवे चुल्लसयर्ग समाणो पासयं अभीयं जाव पासित्ता दोषि तमपि तहेय भणइ जाव ववरोविजसि । अर्थ-तम देव चौथी बार चुल्लशतक घमणोपासक को कहने लगा--'यदि तू तों को मंग नहीं करेगा, तो तेरी मो सम्पति छ: करोड़ को निधान के रूप में, छ: करोड़ की व्यापार में, छ: करोड़ की घरबिखरी में है, उसे में आलमिया नगरी के सारे मागों में बिखेर दंगा, जिससे तू आत्त-ध्यान ध्याता हुआ अकाल मृत्यु से मर जायगा । देव के ये पचन सुन कर चुल्लशतक विचलित नहीं हुआ, तो देवने उपरोक्त वचन दो-तीन बार कहे। तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चपि सरचापि एवं बुत्सस्स समाणस्म अयमेयारूवे अज्झथिए ४ 'अहो णं इमे पुरिसे अणारिए जहा चुलणीपिया तदा चिंतेइ जाव कणीयसं जाव आयंचइ । जाओऽवि घणं इमाओ मम छ हिरण्णकोहीओ णिहाणपउत्ताओ छ बुद्धिपउत्ताओ छ पविस्थरपउत्ताओ ताओऽवि य णं इच्छह ममं साओ गिहाओ जीणेता आलभिपाए णयरिए सिंघाडग जाब विपरित्तए । सं सेयं खस्तु ममं एयं पुरिसं गिण्डित्तए तिकटु उद्धाइए जहा सुरायो सद्देष भारिया पुच्छह तहंष कहेइ ॥ सू. ३३ ॥

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