Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पंचम अध्ययन
श्रमणोपासक चुल्लशतक
एवं खलु जर ते णं काले णं ते णं समएणं आलमिया णाम णपरी, संखवणे उज्जाणे, जियसत्तू राया, चुल्लसपए गाहावा अइढे जाव छ हिरण्णकोडीओ जाव छ पण लगोशाशसिप वारा, सामारिया, सामी समोसदे, जहा आणंदो गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाप धम्मपण्णर्ति उपसंपज्जिताणं विहरह ॥ सु. ३२ ॥
अर्थ-हे जंग। उस काल उस समय में जब भगवान महावीर स्वामी विचर रहे थे, आसमिका नामक नगरी के बाहर शंखवन नामक उद्यान पा, जितशत्रु राजा राज्य करता था। 'चुल्लशतक' नामक ऋद्धिसम्पत गाथापति रहता था। उसके छह करोड़ का धन निधान में, छह करोड़ का व्यापार में, छह करोड़ की घरविक्षारी व वस हजार गायों का एक बज ऐसे छह बज थे। भगवान् आलमिका गरी पधारे। पल्लनातक में धर्म सुन कर आनन्वनी की भांति बावकवत धारण किए । कामदेव की भांति पौषधयुक्त होकर भगवान द्वारा बताई गई धर्म-विधि अनुसार पालन करने लगा।
तए णं तस्स चुल्लसयगरस समणोषासयस्स पुरुवरसावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंलिअंजाब असिंगहाय एवं षयासी-"भो चुल्लसयमा समणोवासया! जाव ण मंजसि तो ते अज्ज जेई पुत्तं साओ गिहाओ जीणेमि, एवं जहा चुलणीपिय । णवर एक्केरके सत्त मंससोल्लया जाव कणीयसं जाप आयंचामि । सपणे से चुल्लसपए समणोपासए जाप विहरण ।
अर्ष-मध्यरात्रि के समय एक वेब आया और कहने लगा कि 'हे चल्लातक