Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
छठा अध्ययन
श्रमणोपासक कुण्डकोलिक
छहस्स उक्खेवओ। एवं खलु जम्बू ! तेणं काले ण तेणं समए णं कम्पिल्लपुरे णयरे । सहरसम्भवगे उजाणे । जियसनु राया। कुशकोलिए गाहाबई । पूसा भारिया । छ हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ, छ बुदिनपउत्ताओ, छ पवित्थर. पउत्साओ, छ षया सगोसाहस्सिएणं वएणं । सामी समोसदे । जहा कामदेगे तहा साधयपम्म पडिबज्जह । सच्चेष वसम्वया जाव पडिलामेमाणे विहरह।।
अर्थ-छठे अध्ययन का प्रारम्म । सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं-'हे जंबू । भगवान् महावीर स्वामी की विद्यमानता में, कम्पिलपुर नामक नगर पा। महलाच वम नामक उद्यान पा । जितशत्रु राजा राज्य करता था । वहाँ 'कुणकोलिक' नामक गापापति रहता था। उसकी पत्नी का नाम पूषा था। छ: करोष स्वर्ण मुद्राएं मण्डार में, छ: करोड़ व्यापार में लगा हुआ था, और छ: करोड़ की घर-शिखरी पी। भगवान् का कम्पिलपुर पधारना हमा। कामदेवजी को मोति कुष्कोलिक ने भी बारह प्रकार का बाधक-धर्म स्वीकार किपा, यावत् साधु-साधियों को प्रासुक-एषणीय आहार-पानी बहराते हुए रहने लगे।
तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए अण्णया कयाह पुश्वावरपड कालसमयंसि जेणेव असोगवणिया जेणेव पुढवीमिलापट्टए तेणेव उबागच्छद, उवागछित्ता णाममुहगं च उत्तरितगं च पुढवीसिलापहर ठवेड, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महाच रस्स अंतियं धम्मपण्णत्तिं उघसंपज्जित्ताणं विहरह।