Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय अध्ययन
चुलनीपिता श्रमणोपासक
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उक्खेवो तहयरस अज्झयणस्स — एवं खलु जंबू ! तेणं काले णं तेणं समपर्ण वाणारसी णामं णयरी, कोट्टए चेइए, जियसत्तू राया । तत्थ णं वाणासीय जयरीए चूलणीपिया णामं गाहावई परिवसह । अढे जाव अपरिभूए । सामा मारिया । अड्ड हिरण्णकोडीओ णिहाणपउत्ताओ अट्ठ त्रुटि पत्ताओ अट्ठ पवित्थरपउत्ताओं अट्ठ वया दसगोसाहस्रिणं वरणं जहा आणंदो राइसर जाव सव्वकज्जनहावर यावि होन्था । सामी समोसढे, परिसा णिग्गया, चुलणीपियावि जहा आणंदो तहा णिग्गओ, तहेब गिहिधम्मं पढिबज्जर, गोयमपुच्छा तहेव से जहा कामदेवरस जाव पोसहसालार पोसहिए भयारी समणस्स भगवओ महावीररस अतियं धम्मपणति उवसंपज्जित्ताणं बिहर ३ ॥ सू. २७ ॥
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अर्थ-- तृतीय अध्ययन का प्रारंभ - भगवान् सुधर्मा स्वामी फरमाते हैंहे जम्बू ! उस काल उस समय जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विचर रहे थे, मारसी नामक नगरी थी। वहाँ कोष्ठक नाम का उद्यान था । जितशत्रु राजा राज्य करता था। उस वाणारसी नगरी में ' चुलनी पिता' नामक गद्यापति रहता था, जो ऋद्धिसम्पन्न यावत् अपराभूत था । उसके आठ करोड़ का धन निधान के रूप में, आठ करोड़ व्यापार में तथा आठ करोड़ की घर बिखरी थी। दस हजार गायों के एक व्रज के हिसाब से आठ वज थे। उसकी पत्नी का नाम श्यामा' था। भगवान् वहां पधारे। परिवद आई। चुलनीपिता ने भी धर्म सुन कर आनन्दजी की भाँति श्रावक व्रत अंगीकार किया । कालान्तर में कामदेव की भाँति घुटनीपिता पौषधशाला में ब्रह्मचर्ययुक्त पौषध करता हुआ बमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा फरमाई गई धर्म-प्रज्ञप्ति को स्वीकार कर आत्मा को भावित करने लगा ।