Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 72
________________ कामदेव का भावरी मर्थबहुत-से सम्धु-साध्वियों को आमंत्रित कर श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने फरमाया--"हे आर्यो ! गृहस्प अवस्था में रह कर भावक-धर्म का पालन करते हुए भी जब वैविक, मानवीय और तिर्मच संबंधी उपसा को धममोपासक सम्यक प्रकार से तहन करते हैं, परंतु धर्म से विचलित नहीं होते, तां साधु-साध्दियों का तो कहना ही पया ? वे सो वावशांगी रूप गणिपिटक के धारक होते हैं। अतः उन्हें तो दैविक मानवीय और तियंच संबंधी उपसगों को सम्यक प्रकार से सहन करना ही चाहिए।" भगवान् के इन बचनों को सभी साधु-साध्वियों ने विनयपूर्वक स्वीकार किया। कामदेव ने भगवान से अनेक प्रश्न पूछ कर अर्थ धारण किये और वंबना नमस्कार करके जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में लौट गए। भगवान् मी कालान्तर में चंपा से विहार कर बाहर जनपद में विचरने लगे। विचन--कामदेवजी ने सविधि पौषध पाल कर वस्त्र परिपर्सन फिए । पौषध-सभा में जाने योग्य विशिष्ट वस्त्र नहीं थे। शंका---" मूलपाठ में तो बिना पौषध पाले ही समवसरण में गये ऐसा वर्णन है, फिर 'आप सविधि पौषध' पालने की बात कैसे कह रहे हैं ?" समाधान-- उन्होंने उपवास रूप पोषध नहीं पाला पा । पारणा तो भगवान के पास से लोटने के बाद किया पा। यही आशय समझना चाहिए। नए णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपरिमे उपसंपमिसाणं विहरइ । तए णं से कामदेव समणोवासए पहहिं जाव भविप्ता वीसं बासाई समणोपासग परियागं पाउणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासेसा माप्तियाए सलेहणाए अप्पाणं झूसिप्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेसा भालोइय. पडिक्फते समाहि पत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्म पग्सियस महाविमाणस्स उत्तरपुरछिमेणं अरुणामे विमाणे देवत्ताए उवषण्णे | तत्य णं अस्गइयाणं देवाणं पत्तारि पलिओवमा टिई पण्णत्ता कामदेवस्स वि देवस्स

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