Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्रमणोपासक कामदेव--तुम घन्य हो- इन्द्र से प्रशंसित
विप्पजहइ, विप्पजहिता एगं मई दिव्यं देवरूवं विउवह, हारविराइयवच्छ जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणं पमासेमाणं पासाइयं दरिसणिज्ज अभिरूवं परिरूवं दिडर्व देघाहर्ष बिउठवा विउठिवत्ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसह. सालं अणुप्पषिसइ अणुप्पविसित्ता अंतलिक्वपरिवणे सखिखिणियाई पंच. वण्णाई वत्थाई पवरपरिहिर कामदेवं समणोधासयं एवं क्यासी
अर्थ-(यक्ष, हाथी और सपं रूप तीन प्रकार से उपस देने के बाद मी) जब सर्प रूपधारी वेव ने कामदेव श्रमणोपासक को मिर्मय यावत् धर्मध्यान में लीम देखा, और निपंथ-प्रवचन से लेता-मात्र मी चलित न कर सका, लुमित नहीं कर सका, विपरिणामित नहीं कर सका, सब थक कर त्रास को प्राप्त हमा, और क्लात होकर शानः शन पौषधशाला से बाहर निकला। उसमें सर्प का रूप त्याग कर देष रूप की विकुर्षणा की। उस देव का वक्षस्थल मालाओं से सुशोभित था, मामूषणों तथा शरीर की काति से वशों दिशाएँ प्रका. शित हो रही थी, वह देष दर्शनीय, बार-बार दर्शनीय और रूप काति में अनुपम या 1 ऐसी विकुर्वणा करके वह कामदेव बमणोपासक को पौषधशाला में आया । अंतरिक्ष में घंधुद सहित श्रेष्ठ पांचों रंगों के प्रधान वस्त्र धारण किए हुए उस देव ने कामदेव से इस प्रकार कहा
कामदेव तुम धन्य हो--इन्द्र से प्रशंसित " भो कामदेवा समणोवासया ! धपणेसि णं तुम देवाणुप्पिा ! सपुणे कपत्थे कयलक्षणे सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सा जम्मजीवियफले, अस्स णं तब णिग्गंथे पावयणे इमेयाख्या पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविदे देवराया जाव सक्कसि सीहासणंसि घउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं जाव अण्णेसिं च पट्टणं देवाण य देवीण य मझगए एषमाइक्खद, एवं भासह, एवं पण्णवेह, एवं परूबेड़-एवं खल देवाणुपिया ! जंबूहीवे दीवे मारहे वासे चंपाए णयरीए कामदेवे ममणोवासए पोसहसालाए पोसहियर्षभधारी वन्भसंधारोवगर समणस्स भगवओ महा रस्स अंनियं धम्मपण्णात उपसंपत्तिाणं विहरह । णो खलु से सक्का केणइ देवेण वा दाणवेण वा जाप