Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बमणीपासक कामदेव-देवोपना
कामदेव को अत्यन्त भयंकर वेदना हई, जो दुसह्य, कर्कश, कठोर यावत् असह्य थी। परंतु कामदेव धर्मध्यान से विचलित नहीं हुए और उस वेदना को समभाव से सहते रहे।
हस्ती रूप से घोर उपसर्ग तए णं से देवे पिसापरूवे कामदेवं समणोवालयं अमीए जाय बिहरमाणं पास पासिता जाहे जो संचापर कामदेवं समणोवासपं जिग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए था खाभित्तए वा विपरिणामित्तए था ताहे संते संते परितंते सणिपं मणियं पच्चोसफ्फर पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पढिणिक्खमा परिणिक्खमित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहा विप्पजाहिसा एगं मई दिव्यं इत्यि रूपं विउवा मतंगपाठियं सम्म संट्टियं सुजायं पुरओ उदग्गं पिओ वराह अयाच्छि अलंच. फुच्छि पलंपलंयोदरापरकर अन्झुग्गयमउलमल्लियाविमलघवलदत कंत्रणकोसीपबिहानं आणामिपचायल लियसविल्लियग्गसो कुम्मपडिपुण्णचलणं वीमाणा अल्लीणपमाणजुत्तपुच्छ मत्तं मेहमिव गुलगुलेंतं मणपवणसइणवेगं दिव्यं हत्यिरूचं विउव्या विवियत्ता जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए तेणेव उवागण उवागछित्ता कामदचं समणोवासयं एवं धपासी।
अर्थ-उस पिशाच रूपधारो देव ने कामदेव को भय-रहित यावत धर्मध्यान करते देखा। जब वह उन्हें निग्रंथ-प्रवचन से चलित, अमित और विपरिणामित नहीं कर सका, तो वह लज्जा और ग्लानि से थक कर बानः वानः पौषधशाला से बाहर निकला । उसने पिशाच रूप त्याग कर एक महान दिव्य हाथी का रूप बनाया। चार पाय, सूर, पूंछ और लिंग ये सातों अंग भूमि का स्पर्श करते थे, इस प्रकार वह हायी सप्तमांग प्रतिष्ठित था। अंगोपांग सुन्दर और प्रमाणोपेज थे, आगे की ओर मस्तक ऊँचा था, पृष्ठ भाग सूअर के समान पुष्ट मा, उसकी कुक्षि बकरी के समान अलंब थो, गजानन के समान होठ लम्बे और लटक रहे थे, दात मल्लिका (नवीन विकसित बेला) के फूल के समान स्वच्छ श्वेत, तथा स्वर्ण की चूड़ियों वाले में, कुछ नमाए हुए धनुष के समान चपल सूड का अप्रभाग पा, कछुए के समान संकुचित धरण थे, बोसो नाखुन , पूछ भी प्रमाणोपेत घी, मावण के बादलों के