Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्रमणोसक कामदेव - देवोपसर्ग
अप्फोडते अभिगज्जत भीममुक्कहट्टहासे णाणाधिहपंचवण्णेहिं लोमेहिं उबचिए एवं महं णीलुप्पलगबलगुलिय भय सिकुसुमप्पा अमिं खुरधारं गहाय जेणेव पोमहसाला जेणेध कामदेवे समणोवासए तेणेष उपागच्छड, उवागच्छत्ता आसुरते रुट्टे कुवि डिक्किए मिसि मिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं एवं षयासी
अर्थ-- इस प्रकार भयंकर रूप बना कर मोम, उत्कृष्ट अट्टहास कर के करतल से स्फोटन करता हुआ, मेघ के समान गर्जना करता हुआ, पांचों रंगों वाले लोगों सहित, नील कमल के समान, भैंस के सौंप के समान, अलसी के कुसुम तथा नील के समान प्रभा वाली तीक्ष्ण धार वाली तलवार हाथ में ग्रहण कर के अहाँ कामदेव श्रमणोपासक की पौषधशाला थी, वहाँ वह वेब आया और भयंकर क्रोधाभिभूत हो कर मिसमिसाहट करता हुआ कहने लगा ।
हे भो कामदेवा ! समणोवासया अपत्थियपत्थिया दुरंतपंतलक्षणा हीणपुण्णधाउद सिया हिरिमिरिधि- कित्तिपरिवज्जिया ! धम्मकामया पुण्णकामया, सरकामया मोकामया धम्मखिया पुष्णकंस्विया सग्गकंस्थिया मोक्खकंखिया धम्मपित्रासिया पुण्णपिवासिया सम्मविवासिया मोक्षपिवासिया ! णो खलु कप्पड़ तव देवाशुपिया ! जं सीलाई क्याई वेरमणाई पच्चत्रखाणाई पोसहोववासाई चालितए वा खुमित्त वा खंडितए वा मंजित वा उज्झित वा परिचहत्तर वा तं जड़ णं तुमं अजं सीलाई जाव पोसहोववासाई ण छड्रेसि ण मंजेसि नो ते अहं अज्ज इमेणं णीलुप्पल जाव असिणा खंडाखंडि करेमि, जहा गं तुमं देवाशुपिया अदुहहवसटे अकाले चैव जीविद्याओ वत्ररोविज्जसि । नए णं से कामदेवे समणोवास तेणं देवेणं पिसायरूयेणं एवं वृत्ते ममाणे अभी अतत्थे अणुब्बिगे अनु भिए अचलिए असंते तुसिणीए श्रमज्झाणोषगए विहरः । सू. १९॥
" अरे हे कामदेव श्रमणोपासक ! जिसकी कोई चाहना नहीं करता उस मृत्यु की चाहना करने वाले ! वुष्ट एवं हीन लक्षणों वाले ! हीन चतुवंशी को जन्मे । लज्जा, लक्ष्मी, धर्म और कीर्ति से रहित। धर्म, पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने की