Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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प्रथमं परिशिष्टम्- टिप्पनानि
भवो मानुषः, तिर्यग्योनिभ्यो भवस्तैर्यग्योनः, आत्मना संवेद्यत इत्यात्मसंवेदनीय इत्येवं चतुर्भेद इति ॥३००५॥" - विशेषाव० मलधारि०॥
[पृ०४८२ पं०१५] चण्डकौशिककथा- ताहे सामी उत्तरवाचालं वच्चइ, तत्थ अंतरा कनकखलं नाम आसमपदं, तत्थ दो पंथा-उज्जुगो वंको य, जो सो उज्जुगो सो कणकखलमज्झेणं वच्चइ, वंको परिहरंतो, सामी उज्जुगेण पहावितो, गोवालेहिं वारितो-देवज्जगा ! मा एएण मग्गेण गच्छह, एत्थ दिट्ठीविसो सप्पो अच्छइ, सामी जाणइ-जहा स भवितो संबुज्झिहिइ, ताहे गतो, गंतूण जक्खघरमंडवियाए पडिमं ठितो, सो पुण सप्पो को पुव्वभवे आसि ?, भण्णइ-खमगो, पारणगे खुड्डएण समं वासियभत्तस्स गतो, तेण मंडुक्किया विराहिया, सो खुड्डएण पडिचोइतो, ताहे सो अन्नं मतेल्लियं दरिसेइ, भणइ-इमावि मए मारिया ?, जातो लोएण मारियातो तातो सव्वातो दरिसेइ, ताहे खुट्टएण नायं-वियाले आलोहिइ, सो वियाले आवस्सगआलोयणाए आलोइत्ता निविट्ठो, खुड्डगो चिंतेइ-नूणं से विस्सरियं, ताहे संभारियं, रुट्ठो खुड्डगस्स आहणामि त्ति उद्घाइतो, तत्थ खंभे आवडितो मतो, विराहियसामन्नो जोइसिएसु उववन्नो, ततो चुतो कणगखले पंचण्हं तावससयाणं कुलवइस्स भारियाए तावसीए उयरे आगतो, दारगो जातो, तत्थ से कोसिउ त्ति नामं कयं, सो अईवपुव्वभवसहावेण चंडकोवो, तत्थ व अन्नेऽवि अत्थि कोसिया, ततो तस्स चंडकोसिउ त्ति नामं कयं, सो य कुलवती मतो, पच्छा सो कुलवती जातो, सो तत्थ वणसंडे मुच्छितो, तेसिं तावसाणं ताणि फलाणि न देइ, ते अलभंता गया दिसोदिसिं, जेऽवि तत्थ गोवालाई एइ तंपि हंतूण धाडेइ, तस्स य अदूरे सेयविया नाम नगरी, ततो रायपुत्तेहिं आगंतूण विरहिए सो वणसंडो पडिनिवेसेण भग्गो विणासिओ य, तस्स गोवालएहिं कहियं, सो तया कंटियाणं गतो आसि, ततो कंटियातो छड्डित्ता परसुहत्थो रोसेण धमधमंतो गतो, कुमारेहिं दिट्ठो आगच्छंतो, तं दद्दूण पलाया, सो परसुहत्थो पधावंतो खुड्डे आवडिऊण पडितो, सो कुहाडो उद्धो ठितो, तत्थ से सिरं दोभागे कयं, तत्थ मतो तम्मि वणसंडे दिट्ठीविसो सप्पो जातो, तेण रोसेण लोभेण य तं वणसंडं रक्खइ, ते तावसा सव्वे दड्डा, जे अद्दड्डगा ते नट्ठा, सो तिसंझं वणसंडं परिअंचिऊण जं सउणगमवि पासइ तं दहइ, ताहे सामी तेण दिट्ठो, ततो आसुरुत्तो ममं न जाणसि ?, सूरं निज्झाएत्ता पच्छासामि पलोएइ, सो न डज्झइ जहा अन्नो, एवं दो तिन्नि वारे, ताहे गंतूण डसइ, अवक्कमइ मा मे उवरिं पडिहिइ, तहवि न मरइ, एवं तिन्नि वारे, ताहे पलोयंतो अमरिसेणं अच्छइ, तस्स भगवतो रूवं पेच्छंतस्स ताणि विसभरियाणि अच्छीणि विज्झाइयाणि सामिणो कंतिसोम्मयाए, ताहे सामिणा भणियं-उवसम ! भो चंडकोसिया !, ताहे तस्स ईहापोहमग्गणगवेसणं करेंतस्स जाईसरणं समुप्पण्णं, ताहे तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंतो मणसा भत्तं पच्चक्खाइ, तित्थगरो जाणइ, ताहे सो बिले तुडं छोढूण ठितो, माऽहं रुट्ठो संतो लोग मारेहं, सामी तत्थ अणुकंपणट्ठाए अच्छइ, सामिं दद्दूण गोवालवच्छबाला अल्लियंति, रुक्खेहिं आवरित्ता पाहाणे खिवंति, न चलइ त्ति अल्लीणा, कढेहिं घट्टितो, तहवि न
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