Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 567
________________ १५२ द्वितीयं परिशिष्टम् ५६३ गाथा पृष्ठाङ्कः | गाथा पृष्ठाङ्कः परियायस्स उ छेओ....[विशेषाव० १२६८] ५५५/लाभमएण व मत्तो अहवा ..... सेहस्स निरइयारं तित्थंतरसंकमे ..... [बृहत्कल्प० ६२४३] ५६३ [विशेषाव० १२६९] ५५५ पुव्वभववेरिएणं अहवा रागेण..... परिहारेण विसुद्धं सुद्धो य..... [बृहत्कल्प० ६२५८] [विशेषाव० १२७०] ५५५ / उम्माओ खलु .....[बृहत्कल्प० ६२६३] ५६३ तं दुविकप्पं निव्विस्समाण-.... रूवंगं द₹णं उम्माओ अहव..... विशेषाव० १२७१] ५५५/ [बृहत्कल्प० ६२६४] ५६३ कोधाइ संपराओ.....[विशेषाव० १२७७] ५५५] तिविहे य उवस्सग्गे दिव्वे ..... सेढिं विलग्गओ तं.....[विशेषाव० १२७८] ५५६] [बृहत्कल्प० ६२६९] अहसदो जाहत्थो आङोऽभिविहीए..... | विजाए मंतेण य.....[बृहत्कल्प० ६२७०] [विशेषाव० १२७९] ५५६ अहिगरणम्मि कयम्मि उ तं दुविकप्पं छउमत्थ-.... [बृहत्कल्प० ६२७९] ५६३ विशेषाव० १२८०] ५५६ अटुं वा हेउं वा समणीणं . प्राणा द्वित्रिचतुः प्रोक्ता .....[ ] ५५७ बृहत्कल्प० ६२८२] ५६४ अद्धेण छिन्नसेसं पुव्वद्धेणं .....[ ] ५५८ अट्ठो त्ति जीए कजं संजायं सव्वंगियं तु गहणं करेण ..... [बृहत्कल्प० ६२८६] ५६४ [बृहत्कल्प० ६१९२] ५६२ | अइवाइगम्मि बाहिं अच्छंति ..... मिच्छत्तं उड्डाहो विराहणा ... [व्यवहारभा० २५२४] [बृहत्कल्प० ६१७०] ५६२ | आभिग्गहियस्स असई तस्सेव..... तिविहं च होइ दुगं रुक्खे .... व्यवहारभा० २५२६] [बृहत्कल्प० ६१८३] ५६२| विपुलाए अपरिभोगे भूमीए असंपत्तं पत्तं वा.. [व्यवहारभा० २५२७] ५६५ [बृहत्कल्प० ६१८६] ५६२ | तण्हुण्हभावियस्सा....[व्यवहारभा० २५३३] ५६५ पंको खलु चिक्खल्लो ..... | दसविहवेयावच्चे सग्गाम ..... [बृहत्कल्प० ६१८८] ५६२] [व्यवहारभा० २५३९] पंकपणएसु नियमा ओगसणं | सीउण्हसहा भिक्खू ण य..... [बृहत्कल्प० ६१८९] ५६३/ व्यवहारभा० २५४०] ५६५ रागेण वा भएण वा अहवा ..... | सव्वस्स छड्डण विगिचणा ..... [बृहत्कल्प० ६१९५] ५६३ [बृहत्कल्प० ५८१३] ५६६ इति एस असम्माणा खित्तो | सुयवं तवस्सि परिवारवं च ..... [बृहत्कल्प० ६२४२] ५६३] [व्यवहारभा० २५४३] ५६६ सण ..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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