Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 566
________________ गाथा पृष्ठाङ्कः गाथा अट्ठा १ णट्ठा २ हिंसा भावपरिन्ना जाणण बीयपदमणप्प ...[निशीथभा० ३७७९] ५४२ रागो उ होइ निस्सा ..[ ] अहवण आहाराई दाही.....[] तिण्हपरि फालियाणं वत्थं .... [ आव० सं० ] ५४४ [आचाराङ्गनि० ३७] आगमसुयववहारो सुणह...... [ व्यव० भा० ४०२९] पच्चक्खो वि यदुविहो [ व्यव० भा० ४०३०] नोइंदियपच्चक्खो ववहारो स्थानाङ्गसूत्रटीकायामुद्धृतानां साक्षिपाठानां सूचिः [ व्यव० भा० ४०३१] पच्चक्खागमसरिसो होइ ..... [ व्यव० भा० ४०३५] पारोक्खं ववहारं आगमओ [ व्यव० भा० ४०३७] जं जहमोल्लं रयणं तं जाण....... [ व्यव० भा० ४०४३] कप्पस य निज्जुत्तिं ववहारस्सेव ५४५ Jain Education International ५४६ दूमिय धूमि वासिय ५५० ५५० ५५१ ५५१ [बृहत्कल्प ० ५९५ ] विहिगहियं विहिभुत्तं .....[ओघनि० ५९२] ५४६ अहवा वि य विहिगहियं ..... [ ] नत्थी अरहंतत्ती जाणं वा ..... [ ५४६ | एत्थ पसिद्धी मोहणीय - ..... [ अणिमिस देवसहावा [ ] ५४६ | जियरागदोसमोहा सव्वन्नू .....[ ] वत्थुपयासणसूरो अइसय .....[ 1 1 ५५२ ५५२ ५५२ ५५२ [ व्यव० भा० ४४३५ ] ५४६ तेसि नमो तेसि नमो . [ पञ्चव० १६००] ५५२ तं चेवऽणुसज्जते..... [व्यव० भा० ४४३६ ] ५४७ एयम्मि पूइयम्मी नत्थि .....[ ] ५५२ अपरक्कमो तवस्सी तुं देवाण अहो सीलं [] ५५२ ५५३ ५४७ रागद्दोसविरहिओ.....[विशेषाव० ३४७७] ५४७ अहवा भवं समाए ... [ विशेषाव० ३४७८ ] ५५३ अहवा समाई सम्मत्तनाण-. ५४७ ५४६ | जग्गण अप्पडिबज्झण जइ..... 1 उउवासा समतीता कालातीता..... ५४६ [ व्यव० भा० ४४४०] अह पट्टवेइ सीसं.... [ व्यव० भा० ४४४९] सो ववहारविहिन्नू.... [व्यव० भा० ४४८९ ] जेणऽन्नइया दिट्ठे ..... [ व्यव० भा० ४५१५] ५४७ सो तम्मि चेव..... [ व्यव० भा० ४५१७] वेयावच्चकरो वा सीसो ५५० [[निशीथभा० ७८७] अवलक्खणेगबंधे ..... [ निशीथभा० ७५० ] ५५० [निशीथभा० २०४८] [ व्यव० भा० ४५१८] बहुसो बहुस्सुएहिं .....[व्यव० भा० ४५४२ ] ५४७ जं जस्स उपच्छित्तं . [ व्यव० भा० १२] ५४७ असढेण समाइन्नं जं [ बृहत्कल्प ० ४४९९] [विशेषाव० ३४७९] ५४७ | अहवा समस्स आओ गुणाण..... १५१ पृष्ठाङ्कः ५४८ ५४८ For Private & Personal Use Only ५५० ५५० [विशेषाव० ३४८०] ५५४ ५४७ | अहवा सामं मेत्ती..... [ विशेषाव० ३४८१] ५५४ सव्वमिणं सामाइयं ..[विशेषाव० १२६२ ] ५५४ सावज्जजोगविरइ त्ति.... [ विशेषाव० १२६३] ५५४ तित्थेसु अणारोवियवयस्स [विशेषाव० १२६४] ५४७ | ५५३ ५५४ www.jainelibrary.org

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