Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 564
________________ गाथा तत्थोदार १ मुलं २ उरलं .....[ ] भन्नइ य तहोरालं वित्थरवंतं .....[] उरलं थेवपदेसोवचियं .....[ ] विविहा व विसिट्ठा वा ....[ ] कज्जम्मि समुप्पन्ने .....[ पाणिदयरिद्धिसंदरिसण - ... [] सव्वस्स उम्हसिद्धं ..[ ] कम्मविगारो कम्मणमट्ठ- .....[ ] अविसंवादनयोगः .....[प्रशम० १७४] पुढवि-दग-अगणि-..... [ दशवै० नि० ४६ ] ५११ ५११ पञ्चाश्रवाद्विरमणं .....[प्रशम० १७२] रस- रुधिर-मांस - मेदो- .....[ ] अणसणमूणोरिया पायच्छित्तं विणओ तो कयपच्चक्खाणो स्थानाङ्गसूत्रटीकायामुद्धृतानां साक्षिपाठानां सूचिः [ पञ्चव० ५३७, पञ्चा० ५/४० ] संविग्गअन्नसंभोइयाण [ पञ्चव० ५३८, पञ्चा० ५।४१] खंती य मद्दवऽज्जव मुत्ती ५११ . [ दशवै० नि० ४७] ५११ [दशवै० नि० ४८]५११ [पञ्चाशक० ११।१९ आव० सं० ] उक्खित्तमाइचरगा Jain Education International . [ पञ्चव० ३०३] . [ पञ्चव० २९८ ] ***** [ बृहत्कल्प ० ५९५४] आयावणा यतिविहा पृष्ठाङ्कः गाथा ५०७ गोदुह उक्कड पलियंकमेस ५०८ आयरिय उवज्झाए थेर-... ५०८ निर्वेशः परिभोग: [ ] ५०८ कालक्कमेण पत्तं . [ पञ्चव० ५८१] ५०८ | तिवरिसपरियागस्स उ... [ पञ्चव० ५८२] .....[पञ्चव० ५८३] [ पञ्चव० ५८४] [बृहत्कल्प ० ५९४५ ] तिविहा होइ निवण्णा ओमंथिय..... [बृहत्कल्प ० ५९४६ ] ५०८ दस कप्प-व्ववहारा ५०८ दसवासस्स विवाहो ५०८ बारसवासस्स तहा ५११ चोद्दसवासस्स तहा ५१२ मासभंतर तिन्नि दगलेवा..... ५१२ [आव० नि० १२०३] वडवड वा ५१२ इति सुत्त उत्ता १ उद्दिट्ठ संसट्टमसंसट्टे[ ] ५१३ [बृहत्कल्प० ५६१९] दत्ती उ जत्तिए वारे [ ] ५१३ पंचन्हं गहणेणं सेसा वि ..... उद्धट्ठाणं ठाणाइयं.... [ बृहत्कल्प ० ५९५३ ] ५१४ वीरासणं तु सीहासणे..... [पञ्चव० ५८८ ] दीहकालठियाओ हस्सकालठियाओ .....[भगवती० १।१।११] | जाई - कुल-गण-कम्मे सिप्पे [निशीथभा० ४४११] अवणेइ पंच ककुहाणि ५१२ जो उत्तमेहिं मग्गो पहओ .....[ ] |वत्थगन्धमलङ्कारं [दशवै० २ २] ५११ ..[ ] ५१४ ५१४ ५१४ सोलसवासाईसु य .....[पञ्चव० ५८७] गूणवीसगस्स उट्ठीवाओ [ बृहत्कल्प ० ५६२०] ओहार - मगराईया घोरा [बृहत्कल्प० ५६३३] सालंबणो पडतो वि . [ पञ्चव० ५८५ ] .. [ पञ्चव० ५८६ ] [ आव० नि० १९८६ ] आलंबणही ...[ ] पुण [आव० नि० १९८७] For Private & Personal Use Only ***** १४९ पृष्ठाङ्कः ५१५ ५१६ ५१६ ५१८ ५१८ ५१८ ५१८ ५१९ ५१९ ५१९ ५१९ ५२३ ५२३ ५२४ ५२६ ५३२ ५३२ ५३२ ५३२ ५३२ ५३३ ५३३ www.jainelibrary.org

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