Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 558
________________ ३२३ स्थानाङ्गसूत्रटीकायामुद्धृतानां साक्षिपाठानां सूचिः १४३ गाथा पृष्ठाङ्कः | गाथा पृष्ठाङ्कः रुंभइ स काययोगं ....[विशेषाव०३०६४] ३२३ आयपइट्ठिय १ खेत्तं पडुच्च २..... हस्सक्खराई मज्झेण ..... । प्रज्ञापना० ४१८] । ३२९ [विशेषाव० ३०६८] ३२३ | उप्पाय १ अग्गेणीय २ वीरियं .....[ ] ३३६ तणुरोहारंभाओ झायइ पुव्वं पच्चक्खाणं ९ विज्जणुवायं .....[ ] ३३७ [विशेषाव० ३०६९] | उप्पाये पयकोडी १ अग्गेणीयम्मि.....[ ] ३३७ चालिज्जइ बीहेइ व धीरो .. | एगा पउणा कोडी णाणपवायम्मि ..... [ ]३३७ [ध्यानश० ९१] ३२३ | छव्वीसं कोडीओ आयपवायम्मि.....[ ] ३३७ देहविवित्तं पेच्छइ अप्पाणं ..... चुलसीइ सयसहस्सा .....[ ] ३३७ [ध्यानश० ९२] ३२३ | छव्वीसं कोडीओ पयाण ..... [ ] ३३७ अह खंतिमद्दवज्जवमुत्तीओ ..... नवकोडीओ संखा .....[ ] ३३७ [ध्यानश० ६९] ३२४| पडिसेवणा उ भावो.....[व्यवहारभा० ३९] ३३८ एस अणाई जीवो संसारो .....[ ] ३२४ | मूलगुण-उत्तरगुणे .....[व्यवहारभा० ४१] ३३८ सव्वट्ठाणाई असासयाई ..... आलोयण १ पडिकमणे ..... _ [मरण० प्रकी० ५७५] ३२४] [व्यवहारनि० १६ भा० ५३] ३३८ धी संसारो जम्मि जुयाणओ ..... | पंचाईयारोवण नेयव्वा जाव...... _ [मरण० प्रकी० ६००] ३२४, । व्यवहारभा० १४१] कोहो य माणो य अणिग्गहीया ..... | दव्वे खेत्ते काले भावे पलिउंचणा..... [दशवै०८।४०] ३२४] [व्यवहारभा० १५०] ३३९ आसवदारावाए तह ..... | सच्चित्ते अचि(च्चि)त्तं १ ..... [सम्बोधप्र० १४०५] ३२४ [व्यवहारभा० १५१] सुहदुक्खबहुसईयं कम्मक्खेत्तं .....[ ] ३२६ दुविहो पमाणकालो ..... कम्मं कसं भवो वा कसमाओ ....... ___ [आव० नि० ७३०, विशेषाव०२०६९] ३३९ [विशेषाव० १२२८, २९७८] | ३२६ | आउयमेत्तविसिट्ठो स एव..... सापेक्षाणि च निरपेक्षाणि च .....[ ] ३२६ [विशेषाव० २०३७] ३३९ पढमिल्ल्याण उदए.....[आव०नि० १०८] ३२७ | कालो त्ति मयं मरणं जहेह..... केवलियनाणलंभो ... [आव०नि० १०४] ३२७] [विशेषाव० २०६६] अनन्तान्यनुबध्नन्ति यतो .....[ ] ३२८ | सूरकिरियाविसिट्ठो गोदोहाइकिरियासु नाल्पमप्युत्सहेद्येषाम् ..... [ ] ३२८] .....[विशेषाव० २०३५] सर्वसावद्यविरतिः .....[ ] ३२८ समयावलियमुत्ता दिवस-..... शब्दादीन् विषयान् प्राप्य..... [ ] ३२८] [विशेषाव० २०३६] ३४० मोत्तूण सगमवाहं पढमाइ .....[ ] ३२८ परिणामो ह्यर्थान्तरगमनं .....[ ] ३४० ३३८ ३४० A-35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579