Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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स्थानाङ्गसूत्रटीकायामुद्धृतानां साक्षिपाठानां सूचिः
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गाथा पृष्ठाङ्कः | गाथा
पृष्ठाङ्कः सव्वत्थोवाइं अणंतगुणवड्डिट्ठाणाणि,..... चउजोयणवित्थिन्ना अद्वैव य..... ३७६ बृहत्क्षेत्र० १७]
३८३ अट्ठविहबंधगस्स आउयभागो .....[ ] ३७६ | पलिओवमट्टिईया .....[बृहत्क्षेत्र० १९] ३८४ सो संकमो त्ति भन्नइ .....[कर्मप्र० २।१] ३७७ | चुल्लहिमवंत पुव्वावरेण . ठितिसंकमो त्ति वुच्चइ .....[कर्मप्र० २।२८] ३७७ | [बृहत्क्षेत्र० २।५५]
३८५ तत्थट्ठपयं उव्वट्टिया व.....[कर्मप्र० २।४६] ३७७ | अउणावन्न नवसए ....[बृहत्क्षेत्र० २।५६] ३८५ जं दलियमन्नपगई णिज्जइ.....
| एएसिं दीवाणं परओ .....[बृहत्क्षेत्र० २।५७]३८५ [कर्मप्र० २।६०]
चत्तारंतरदीवा हय-गय-..... संकमणं पि निहत्तीऍ णत्थि.....
__ [बृहत्क्षेत्र० २।५८]
३८५ [कर्मप्र० ६१]
| ओगाहिऊण लवणं .....[बृहत्क्षेत्र० २५९] ३८५ उप्पन्ने इ वा विगए इ.....[ ]
| आयंसग मेंढमुहा अओमुहा...... दक्खिणपुव्वेण रयणकूडं .....
[बृहत्क्षेत्र० २।६०] द्वीपसागर० १६]
तत्तो अ अस्सकण्णा हत्थियकण्णा..... रयणस्स अवरपासे तिन्नि वि..... [द्वीपसागर० १७]
[बृहत्क्षेत्र० २।६१] सव्वरयणस्स अवरेण तिन्नि.
|घणदंत लट्ठदंता निगूढदंता ..... [द्वीपसागर० १८]
[बृहत्क्षेत्र० २।६२] पुव्वेण तिन्नि कूडा दाहिणओ...
|अंतरदीवेसु नरा धणुसयअठूसिया..... [द्वीपसागर० ६]
[बृहत्क्षेत्र० २।७३] पंचसए बाणउए सोलस.....
| चउसद्धिं पिट्टिकरंडयाण .... [बृहत्क्षेत्र० ३६४] ३८१ [बृहत्क्षेत्र० २।७४]
३८५ जत्तो वासहरगिरी तत्तो .....
| पणनउइ सहस्साइं .....[बृहत्क्षेत्र० २।४] ३८६ [बृहत्क्षेत्र० ३७१]
३८१ | वलयामुह केऊए जूयग.....[बृहत्क्षेत्र० २।५] ३८६ जत्तो पुण सलिलाओ .....[बृहत्क्षेत्र० ३७२]३८१] जोयणसहस्सदसगं मूले ..... विजयाणं विक्खंभो .....[बृहत्क्षेत्र० ३७०] ३८१] [बृहत्क्षेत्र० २।६] ।
३८७ बावीस सहस्साई .....[बृहत्क्षेत्र० ३१७] ३८२ | पलिओवमट्टिईया एएसिं .... पंचेव जोयणसए उड्डे .....[बृहत्क्षेत्र० ३२७] ३८२ [बृहत्क्षेत्र० २।११]
३८७ बासहि सहस्साइं पंचेव.....[बृहत्क्षेत्र० ३३८]३८२ अन्ने वि य पायाला....[बृहत्क्षेत्र० २।१२] ३८७ सोमणसाओ तीसं छच्च .....
जोयणसयवित्थिन्ना .....[बृहत्क्षेत्र० २।१३] ३८७ बृहत्क्षेत्र० ३४६]
३८२ | पायालाण तिभागा..... [बृहत्क्षेत्र० २।१४] ३८७ चत्तारि जोयणसया चउणउया.....
| उवरिं उदगं भणियं .....[बृहत्क्षेत्र० २।१५] ३८७ [बृहत्क्षेत्र० ३४७]
३८२ | परिसंठियम्मि पवणे .....[बृहत्क्षेत्र० २।१६] ३८७
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