Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Abhaydevsuri, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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प्रथमं परिशिष्टम्- टिप्पनानि साम्प्रतं संयमव्याचिख्यासयाऽऽह- पुढविदगअगणिमारुयवणस्सईबिति-चउपणिंदिअजीवे। पेहोपेहपमजणपरिट्ठवणमणोवई काए ॥४६॥ व्या० पुढवाइयाण जाव य पंचिंदिय संजमो भवे तेसिं । संघट्टणादि ण करे तिविहेणं करणजोएणं ॥१॥ अज्जीवेहिं जेहिं गहिएहिं असंजमो इहं भणिओ । जह पोत्थदूसपणए तणपणए चम्मपणए अ ॥२॥ गंडी कच्छवि मुट्ठी संपुडफलए तहा छिवाडी अ । एयं पोत्थयपणयं पण्णत्तं वीअराएहिं ॥३॥ बाहल्लपुहुत्तेहिं गंडी पोत्थो उ तुल्लगो दीहो । कच्छवि अंते तणुओ मज्झे पिहुलो मुणेअव्वो ॥४॥ चउरंगुलदीहो वा वट्टागिति मुट्ठिपोत्थगो अहवा । चउरंगुलदीहो चिअ चउरस्सो होइ विण्णेओ ॥५॥ संपुडओ दुगमाई फलगा वोच्छं छिवाडिमेत्ताहे । तणुपत्तोसिअरूवो होइ छिवाडी बुहा बेंति ॥६॥ दीहो वा हस्सो वा जो पिहुलो होइ अप्पबाहल्लो । तं मुणिअ समयसारा छिवाडिपोत्थं भणंतीह ॥७॥ दुविहं च दूसपणअं समासओ तंपि होइ नायव्वं । अप्पडिलेहियदूसं दुप्पडिलेहं च विण्णेयं ॥८॥ अप्पडिलेहिअदूसे तूली उवधाणगं च णायव्वं । गंडुवधाणालिंगिणि मसूरए चेव पोत्तमए ॥९॥ पल्हवि कोयवि पावार णवतए तहय दाढिगालीओ । दुप्पडिलेहिअ दूसे एवं बीअं भवे पणगं ॥१०॥ पल्हवि हत्थुत्थरणं कोयवओ रूअपूरिओ पडओ । दढगालि धोइ पोत्ती सेस पसिद्धा भवे भेदा ॥११॥ तणपणगं पुण भणियं जिणेहिँ कम्मट्टगंठिदहणेहिं । साली वीही कोद्दव रालग रण्णे तणाई च ॥१२॥ अय एल गावि महिसी मियाणमजिणं च पंचमं होइ । तलिया खल्लग वद्धं कोसग कित्ती य बितिए य ॥१३॥ तह विअडहिरण्णाई ताइँ न गेण्हइ असंजमं साहू । ठाणाइ जत्थ चेए पेह पमज्जित्तु तत्थ करे ॥१४॥ एसा पेह उवेहा पुणोवि दुविहा उ होइ नायव्वा । वावारावावारे वावारे जह उ गामस्स ॥१५॥ एसो उविक्खगो हू अव्वावारे जहा विणस्संतं । किं एयं नु उविक्खसि ? दुविहाए वित्थ अहियारो ॥१६॥ वावारुविक्ख तहिं संभोइय सीयमाण चोएइ। चोएई इयरं पिहु पावयणीअम्मि कजम्मि ॥१७॥ अव्वावारउवेक्खा णवि चोएइ गिहिं तु सीअंतं। कम्मेसु बहुविहेसुं संजम एसो उवेक्खाए ॥१८॥ पडिसागरिए अपमज्जिएसु पाएसु संजमो होइ । ते चेव पमजते असागरिए संजमो होइ ॥१९॥ पाणाईसंसत्तं भत्तं पाणमहवा वि अविसुद्धं । उवगरणभत्तमाई जं वा अइरित्त होज्जाहि ॥२०॥ तं परिठ्ठप्प विहीए अवहटुं संजमो भवे एसो । अकुसलमणवइरोहो कुसलाण उदीरणं चेव ॥२१॥ जुयलं मणवइसंजम एसो काए पुण जं अवस्सकज्जम्मि। गमणागमणं भवइ तं उवउत्तो कुणइ सम्मं ॥२२॥ तव्वजं कुम्मस्स व सुसमाहियपाणिपायकायस्स । हवइ य काइयसंजम चिट्ठतस्सेव साहुस्स ॥२३॥ उक्तः संयमः । आह- अहिंसैव तत्त्वतः संयम इति कृत्वा तद्भेदेनास्याभिधानमयुक्तम्, न, संयमस्याहिंसाया एव उपग्रहकारित्वात्, संयमिन एव भावतः खल्वहिंसकत्वादिति कृतं प्रसङ्गेन । - दशवै० हारि० । ___ संयममधिकृत्याह । सम्यगुपरमः पापस्थानेभ्यः संयमः सप्तदशप्रकार:- पञ्चाश्रवाद्विरमणं पञ्चेन्द्रियनिग्रहश्च कषायजयः । दंडत्रयविरतिश्चेति संयमः सप्तदशभेदः ॥१७२॥ टीका
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