Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Suyagado Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नियुक्तिकार के अनुसार अध्ययनों के प्रतिपाद्य इस प्रकार हैं१. स्वसमय-परसमय का निरूपण २. सम्बोधि का उपदेश ३. उपसर्गों [प्राप्त कष्टों की तितिक्षा का उपदेश ४. स्त्रीदोष का वर्जन-ब्रह्मचर्य साधना का उपदेश ५. उपसर्गभीरु और स्त्रीवशवर्ती मुनि का नरक में उपपात ६. भगवान महावीर ने जैसे उपसर्ग और परीसह पर विजय प्राप्त की, वैसी ही उन पर विजय पाने का उपदेश ७. कुशील का परित्याग और शील का समाचरण ८. वीर्य का बोध और पंडितवीर्य में प्रयत्न ९. यथार्थ धर्म का निर्देश १०. समाधि का प्रतिपादन ११. मोक्षमार्ग का निर्देश १२. चार वादि-समवसरणों-दार्शनिकों के अभिमत का प्रतिपादन १३. यथार्थ का प्रतिपादन १४. गुरुकुलवास का महत्त्व १५. आदानीय-चारित्र का प्रतिपादन १६. पूर्वोक्त विषय का संक्षेप में संकलन-निर्ग्रन्थ आदि की परिभाषा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों का विषय-निरूपण इस प्रकार है१. पुंडरीक के दृष्टान्त द्वारा धर्म का निरूपण २. क्रियाओं का प्रतिपादन ३. आहार का निरूपण ४. प्रत्याख्यानक्रिया का निरूपण ५. आचार और अनाचार का अनेकान्तदृष्टि से निरूपण ६. आर्द्रकुमार का गोशालक आदि श्रमण-ब्राह्मणों से चर्चा-संवाद' ७. गौतम स्वामी और पापित्यीय उदक पेढालपुत्र का चर्चा-संवाद
अंग साहित्य में आचार-निरूपण विभिन्न सन्दर्भो में किया गया है। आचारांग प्रथम अंग है। उसमें वह अध्यात्म के सन्दर्भ में किया गया है। सूत्रकृत दूसरा अंग है। इसमें वह दार्शनिक मीमांसा के सन्दर्भ में किया गया है । इसमें संदर्भ का परिवर्तन हआ है, १. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा २२-२६ : ससमयपरसमयपरूवणा य णाऊण बुझणा चेव ।
संबुद्धस्सुवसग्गा थीदोसविवज्जणा चेव ॥ उवसग्गमीरुणो थीवसस्स णरएसु होज्ज उववाओ। एव महप्पा वीरो जयमाह तहा जएज्जाह ॥ णिस्सील-कुसीलजढो सुसीलसेवी य सीलवं चेव । णाऊण वीरिययुगं पंडियवीरिए पयतितम् ॥ धम्मो समाहि मग्गो समोसढा चउसु सम्ववादीसु । सीसगुणदोसकहणा गमि सदा गुरुनिवासो॥ आयाणिय संकलिया आयाणिज्जम्मि आयतचरितं ।
अप्परगंथे पिडिकवयणे गाधाए अहिगारो॥ २. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा १६५ किरियाओ मणियाओ किरियाठाणंति तेण अज्झयणं ।
अहिगारो पुण भणिओ बंधे तह मोक्खमग्गे य॥ ३. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा १६० : अज्जद्दएण गोसालभिक्खुबंभवतीतिदंडीणं ।
जह हस्थितावसाणं कहियं इणमो तहा बुग्छ ।
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