Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 13
________________ अध्यात्म-प्रवचन आगम-शास्त्र में ज्ञान के सीधे जो पाँच भेद किए गए हैं, उन्हीं को दर्शन-शास्त्र में दो भागों में विभाजित कर दिया है- प्रत्यक्ष प्रमाण और परोक्ष प्रमाण । प्रमाण के इन दो भेदों ज्ञान के समस्त भेदों का समावेश कर दिया गया है। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान को परोक्ष प्रमाण में माना गया है तथा अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण १२ माना गया है। इसके बाद आगे चलकर ज्ञान-विभाजन की एक अन्य पद्धति भी स्वीकार की गई थी। इस पद्धति को विशुद्ध तर्क पद्धति कहा जाता है। इस तर्क-पद्धति के अनुसार सम्यक् ज्ञान को प्रमाण कहा जाता है और उसके मूल में दो भेद किए हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष दो प्रकार का है - मुख्य और सांव्यवहारिक । मुख्य प्रत्यक्ष को अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष और सांव्यवहारिक को इन्द्रियानिन्द्रिय प्रत्यक्ष कहा गया है। निश्चय ही इस विभाजन-पद्धति पर तर्क - शास्त्र का प्रभाव स्पष्ट है। मैं आपसे कह रहा था कि मूल आगम में ज्ञान के सीधे पाँच भेद स्वीकार किए गये हैं, जिनका कथन मैं पहले कर चुका हूँ। पाँच ज्ञानों में पहला ज्ञान है - मतिज्ञान । मतिज्ञान का अर्थ है - इन्द्रिय और मन सापेक्ष ज्ञान। जिस ज्ञान में इन्द्रिय और मन की सहायता की अपेक्षा रहती है, उसे यहाँ पर मतिज्ञान कहा गया है। शास्त्र में मतिज्ञान के पर्यावाची रूप स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध शब्दों का प्रयोग भी किया गया है। मैंने अभी आप से कहा था, कि इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाला ज्ञान मतिज्ञान होता है। इस प्रकार मतिज्ञान के दो भेद हैं-इन्द्रिय-जन्यज्ञान और मनोजन्यज्ञान । जिस ज्ञान की उत्पत्ति मात्र इन्द्रिय निमित्त हो, वह इन्द्रियजन्यज्ञान है और जिस ज्ञान की उत्पत्ति में मात्र मन ही निमित्त हो, वह मनोजन्यज्ञान है । अब यह प्रश्न उठ सकता है, कि इन्द्रिय क्या है और मन क्या है ? जब तक इन्द्रिय और मन के स्वरूप को नहीं समझा जाएगा, तब तक वस्तुतः मतिज्ञान को समझना आसान नहीं है। आत्मा की स्वाभाविक ज्ञान-शक्ति पर कर्म का आवरण होने से सीधा आत्मा से ज्ञान नहीं हो सकता है, अतः उस स्थिति में ज्ञान के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता रहती है। ज्ञान का वह माध्यम इन्द्रिय और मन हो सकता है । इन्द्र का अर्थआत्मा है, और इन्द्र का अनुमान कराने वाले चिन्ह का नाम है - इन्द्रिय । शास्त्र में इन्द्रियों के पाँच भेद बताए गए हैं- स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु और श्रोत्र । इन पाँच इन्द्रियों के शास्त्रों में दो भेद किए गये हैं-द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। पुद्गल की रचना का आकार - विशेष द्रव्येन्द्रिय है और आत्मा का ज्ञानात्मक परिणाम भावेन्द्रिय है। इस प्रकार इन्द्रिय के भेद और प्रभेद बहुत से हैं, किन्तु मैं आपके समक्ष उनमें से मुख्य-मुख्य भेदों का ही कथन कर रहा हूँ । पाँच इन्द्रियों के विषय भी पाँच ही हैं। स्पर्शन का विषय स्पर्श, रसन का विषय रस, घ्राण का विषय गन्ध, चक्षु का विषय रूप और श्रोत्र का विषय शब्द । अब प्रश्न यह होता है, कि मन क्या है ? मन के विषय में बहुत कुछ गम्भीर विचार किया गया है, किन्तु मैं यहाँ पर आपके समक्ष संक्षेप में ही कथन करूँगा। मैं अभी आपसे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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