Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचाशंग सूत्र
आपवादिके | मरणे
चूणिः
५-६ उद्देशः ॥२७६।।
इच्चेतेणं घालमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवंग्गहणेहिं मुच्चति, जणु कारणे पुण, दो अणुण्णाता, तंजहावेहाणसे य गद्धपढे, य, कालकरणं कालपजाओ, जत्तियं सेसकालं आउएणं कम्मं निअरिजति इत्तियं सो अप्पेणवि लब्भति, से तत्थ वियंतिकारए स इति कारणितं मरणं मरमाणो, तत्थेति तत्थ वेहाणसे गिद्धपढे वा, विसिट्ठाअंती वियंती, वियंति करेति वियंतीकारओ, यदुक्तं भवति-अंतकिरियाकारओ, तस्स तं कारणमासज उवसग्गमरणमेव गणिज्जति, इति एवं, अववाइयं मरणं अतीतकाले अणंता साहू मरित्ता निव्वाणगमणं पत्ता, जेण बुच्चति-इच्चेयं विमोहाययणं हियं सुहं खमं जिस्सेसियं अणुगाभितं हियमप्पणो परेसिं च, ण उवघायगं, जहा अग्गिमरणं, आसुकारित्ता अप्पे असुह, सब्बअवग्गहे सुह, अपरोक्वाइत्ता अण्णसुहमवि, एवं खमं, निस्सेसिनं चेति, अणुगच्छति अणुगामितं, जइवि ण णिव्वाति तहावि पुण बोधिलाभाय पंडितमरणमिवेति, इति-एवं मज्झिमवयसाहिगारेण इहं उद्देसए पाएंणं तरुणस्स तस्स सीयविमोक्खो भणितो, तस्साहणा य सव्वविमोक्खो।। इति विमोहज्झयंणस्त चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो॥
उद्देसत्थाहिगारो णिज्जुत्तीए वत्थए-गच्छे सीते य, जिणकप्पाओ वा धेरकप्पाओवा, वत्थपज्जुसितो पुण णियमा जिणकप्पिओ वा परिहारअहालंदब्य पडिमाए पडिवण्णो वा. जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं जाव पुट्टो अहमंसि अवलो अहम| सीति, अपडियण्णत्ता अपडिण्णत्तस्स, एत्तो थेरकप्पियाणं भणितो अहिगारो सुत्तं उच्चारित्ता-जे भिक्खू दोहिं वत्थेहिं सअं
तरुत्तर बज्झो स एव बज्झो जाव संमत्तमेव समभिजाणित्ता, इमंपि जओ कप्पिए सुतं चेव, तंजहा-जस्स णं भिक्खुस्स एवं | | भवति-पुट्ठो अहमंसि, जस्सवि गच्छणिग्गयस्स चउण्हं जिणकप्पियादीणं अण्णतरस्स, किमिति ?-पुट्ठो-पुण्णो रोगेण आतंकेण वा,
| ॥२७६।।

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