Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
View full book text
________________
मौनादि
श्रीआचारांगसूत्र
चूर्णिः ॥३१६॥
बहुचायी रीयति गामाणुगाम, माहणो पुव्यवणितो, न तस्स बहुवयो, यदुक्तं भवति-मोणेण, अहवा जायणि अणुण्णवणिं च मोतुं पुट्ठस्स वागरणं च, जहा सादिदत्तआतपुच्छा, सेसं मोणं, किंच-स एवं गुत्तो सुसयणेहिं तत्थ पुच्छिसु (७५) एगचरावि एगदा राओ एगा चरंति एगचरा उब्भामिया, उब्भामगपुच्छत्ति, एत्थ को आगओ आसी मणुस्सो पुरिसोवा ? इत्थि पुच्छति, अहवा दोवि , जणाइआगम पुच्छंति-अस्थि एत्थ कोयी देवजओ कप्पडिओ वा ?, तुसिणीओ अच्छइ, दटुं वा भणति-को तुम?, तत्थवि मोणं अच्छति, ण तेसिं उब्भामइल्लाण वायंपि. देति, पच्छा ते अचाहिते कम्मइ, एत्थ पुच्छिशंतोवि | वायं ण देइत्तिकाऊणं रुस्संति पिष्टृति य, उम्भामिया य उब्भामगं सो ण साहतित्तिकाउं, किं आगतो आसि ?णागतोत्ति, अवाहिते कसाइय भण्णति-अक्खाहि धम्मे, अहवा हंसपरिणो विसयसमासनिरोही णिव्यणसुहसमाणेहिं वा पेहमाणो विसयसंग| दोसे अ पेहमाणो, इह परत्थ य अपडिने, तंजहा-णो इहलोगट्टयाए तवं अणुचिट्ठिस्सामि, विसयसुहेसु य अपडिनो, संध|प्पमादेसु वा, एगतरपुच्छा गता, सुत्ता रागादिसु, इदाणिं केइ भणति-प्रभू, पच्छा जेण से दिट्ठओ पविसंतो, पुत्ते वा मातरि वा, | जेण भण्णति-अयमंतरंसि को एत्थं के भणंति ?, ते चेव एगचग आगंतुं दट्टणं भणंति-अयमंतरंसे, अयं अस्मिन् अंतरे अम्हसंतगे को एत्थं ?, एवं वुत्तेहिं अहं भिक्खुत्ति एवं वुत्तेवि रुस्सति, केण तवं दिन्नं ? किं वा तुम अम्हं विहारट्ठाणे चिट्टसि ? अकोसेहिंति वा, कम्मारगस्स वा ठाओ सामिएण दिलो होजा, पच्छा रन्नो भण्णति-को एस ?, सामी द्वितो, तुसिणीओ चिट्ठति, | तत्थ गिहत्थे ममत्तं, कमाइते संका य, ते सकमाइते णातुं ज्झातिमेव ण भवति, पढमं दाऊणं एत्ताहे रुस्सह, असंकिते चेव ज्झाति, जसि एगे पवेदेति सिसिरे मारुते पवायते जइ गिम्हकाले एते अन्नतिथिया गिहत्था वा णिवेदेति, सिसिरं सिसिरे वा
॥३१६॥

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384