Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 320
________________ श्रीआचारांग सूत्र दशाद्यध्यासन चूर्णिः ॥३१८॥ दुविहा वजं मुझ० उबसविसओ, ण तत्थ नगरादीइस पारण रुक्खाहारात, . एण वा कोइ, दंसमसगा य जलोयाओ एवमादि उवसग्गे अहियासए, सया समिते सया नाम निच्चकालं, फुसंतीति फासा विरूवरूवाइंति एयाणि य अन्नाणि य अणुलोमाणि पडिलोमाणि य, अवि दुच्चरलाढमचारी (८२) अवि इति अणंतरे, उवसग्गबहुत्ता दुकरं चरिजतीति दुच्चर, लाढ इति जाणवतो, सो दुविहो-बजा भोम्मा य, सो तेसु भगवं ताव तेसु पन्तं सेज्जं सेवित्था, आसणाइंपि चेव पंताणि, पंताओ णाम सुन्नागारादीओ, सडियपडियभग्गलग्गाओ, आसणाणि पंताणि पंसुकरीससकरालीलुगादीउवचित्राणि, कट्ठासणा वा णिचलाणि फलहपट्टयादीहि, एरिसेसु सयणआसणेसु बसमाणस्स लाढेसु (८३) ते उवसग्गा बहवे जाणवता आगंम लाढा, त एव दुविहा वजं सुज्झ० उबसग्गा बहवे पडिलोमा य अकोसवहादि, जाणवता उवसग्गा जणवते भवा जाणपदा, यदुक्तं भवति-अणगरजणवओ पायं सो विसओ, ण तत्थ नगरादीणि संति, लूसगेहिं सो कट्ठ| मुट्ठिप्पहारादीएहिं अणेगेहिं य लूसंति, एगे आहु-दंतेहिं खायंतेत्ति, किंच-अहा लूहदेसिए भत्ते, तसे पाएण रुक्खाहारा तैल-| घृतविवर्जिता रूक्षा, भक्तदेस इति वत्तव्वे बंधाणुलोमओ उवकमकरणं, णेह गोवांगरससीरहिणि, रूक्षं गोवालहलवाहादीणं सीतकूरो, | आमंतेऊणं अंबिलेण अलोणेण एए दिजंति मज्झण्हे लुक्खएहि, माससहाएहिं तं पिणाति प्रकाम, ण तत्थ तिला संति, ण गावीतो बहुगीतो, कप्पासो वा, तणपाउरणातो ते, परुक्खाहारत्ता अतीव कोहणा, रुस्सिता अक्कोसादी य उपसग्गे करेंति, कुक्कुरा तत्थ हिंसिसु णिवतिंसु तत्थ बहवे कुक्कुरादी हिंसंतीति हिसिंसु णिवतिति सब्बओ तं निविसयंति, भट्टारगस्स य नत्थि दंडउत्ति जेण ते पुण पवारेहिति, ते एवं णिन्भया भुक्खिया णिवतंता अपि अग्णे निवाति (८४) जति सहसा सो कोति एगो निवारेति |लूमणगा, जं भणितं होंति-भक्खणगा, भसंतीति भसमाणा, जेवि नामण क्खायति तेवि ते छुच्छुकारेंति आहंसु आईसुति | ॥३१८॥

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