Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचा0दएवि ज्झाणाओ ण चलति, रीयं-चजामिति । एस विही अणोकतो माहणेण मतीमता (९४) इति तृतीयः॥ चिकित्सारांग सत्र- ___उद्देसाभिसंबंधो सेजासु एमणादीसु य निसीहियाठाणेसु केइ तस्स गेगा उप्पन्नपुब्बा, तेसिंवा उदिनाणं अणुदिनाणं काति 2 वर्जनादि चूर्णिः
चिगिच्छा न कयपुवा, भणंति ण च तस्स रोगा उप्पनंति, जति णाम उप्पजेज तोवि ण करेति किरियं, जारिसा पुण | ॥३२॥
अट्ठविहकम्मरोगतिगिच्छा तेण कया भगवता सा तिहिं उद्देमएहि भणिया, इहपि चउत्थउद्देसए तबसंजमतिगिच्छा, अखिलेसु उद्दे९ उप० ४ उद्देशः
सएम अवि सीतदंसमसगअक्कोसतालनादि, सकं परीसहा सोढुं, दुक्खं तु ओमोदरिया, कहमिति ?, अतो ओमोदरियं चाएति (९५) सा य दुविहा-दव्वे भावे य, दब्वे ताव उवगरणं प्रति ओमोदरियं अचेलता, आहारेवि अप्पाहारे आसी, ण अतिपमाणभोई 'बत्तीसं किर कवला' एतो एकेणवि घासेणं ऊगगं, भावे परिताविजमाणोविण रुमति, भणियं च-णो सुकरणं मोनमेगेसिं, चाएतिति अहियासेति, इह पायसो दब्बओमोदरिया, जंण वुच्चति-अपुढेऽवि भगवं रोगेहिं वातातिएहिं रोगेहिं अपुट्ठोवि ओमोदरियं कृतवान् , लोगो तु जतो पुट्ठो रोगेहिं भवति ततो पडिक्कारणनिमित्तं ओम करेति, भगवं पुण अपुट्ठो वातादीएहिं ओमोदरियं चाएति, सुभुजंगं वा जहा आहारेति, आह-किमितमेगंतो रोगेहिं ण सो फुसिजति ?, भण्णति-धातुक्खोभितेहिं ण फुसिजति, जइ कोया कडं सलागं पवेसए तहा, तह(हत)पुन्चो दंडेणं, अतो बुच्चति-पुढे व से अपुढे वा पुढे वा, पुढे तेहिं आगंतुएहिं णो सतं स करेति, जोवि अण्णो करेति तंपि ण च करेतुत्ति साइजइ, अतो णीणिजंति, एवं ताए कडगसलागाए मणसावि भगवता ण सातिजिता, सा पुण तिगिच्छा तंजहा-संसोधणं च वमणं च (९६) संसोधणं विरेयणं, वमणं | वमणमेव, गायभंगणं मक्खणं, सिणाणं देसे ताव हत्थपायधोवणं, दगपडिगतोवा किंचि सिंचति, सव्वे सव्वगायअभिसेयणं, आता- ॥३२॥
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