Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचा रांग मूत्र
चूर्णिः ॥३३७॥
माणा कुंभकारादिणा चलणं वा, चित्तमंता मसिणा सिला एव सचित्ता, लेल गहिता, उडओ सचितो चेत्र, कोला मता मधुणो, तस्स आवासं कंठं, अन्ने वा दारुए, जीवपतिट्टिते हरितादीणं उवरि, उदेहिगाग वा सचिते वा, स अंडो सपाणे पुचमणिता, आमजति एकसिं, पमजति पुणो पुणो, अससरक्खं अचित्तं, देंगे असति उग्गहो अणुण्णावेजति तणादीणं, एवमादीहिं पमजेजा, मणुस्सं वियालो णाम गहिल्लमत्तओ, गहिल्लउ हारणपिसाइया गहिता, सेसा गोणादिमारगा अलकइभावा, खुड्डा खायंति अस्मिन्निति तं, उवातं, वेसी मृसिगा धूली वा, भिल्लुगा पुडाली वा विसमंमि सुणयं पाणियं तिलविजलं, न दुवारवाहा अग्ग| दारं कंटगोंदिता अहेसी, बोंदियग्गहणा कडंगचेलादिणा पिहितं, अणुण्णनवित्तावि ण वदृति, अणुनवितुं वहते गिलाणादिसु
कारणेसु । गामपिंडोलतो विजमाणा ओलेति, संलोगो जहि द्वितो दिस्सति, सपडिदुवारं सपडिजुत्तं दारस्स, केवली बूता, तस्स | पुवपविट्ठस्स णीणियं विहरेजा, अचियत् अंतरालियदोसा, गिहत्थो वा भणति-जो एत्तो चेव पडिच्छत्ति, एते दोसा जम्हा | पुब्बोद्दिट्ठाए पइण्णाए, प्रतिज्ञा हेतुरुपदेशः, एष भगवतां जंणो संलोए, सेत्तमादाय ज्ञात्वा अणावात असंलोए तस्सवि, तस्स | तस्स गिहत्थो सम्वेसिं सामन्नं गिहपासंडसंजएहिं सम्मं दिज, भणेज य-अहं अक्खणितो तुज्झे चेव भुंजत परिभातेत वा, तं
च केइ गिण्हित्ता तुसिणीए० माइट्ठाणं णो एवं करेजा, जइ फव्वंति ण गेहंति, अह असंथरणं गिलाणादीण वा णत्थि ताहे | गेण्हंति, अह असंथरणं तचेव भायंति, अह भणंति-तुमं चेव भाएहि, ते वा वेंटनेति ताहे परिभाएति, खद्धं-बहुगं, डागं सागं | वाइंगणमादि, अह भणंति-भुंजामो, तत्थ अप्पणो उक्ट्ठति तेसिं तहेब देति, अह णिच्छंति, एवं पुण पासत्थेहिं असंभोइएहिं वा, गामपिंडोलादि पुवपविद्वे उवादिकम्म णो पविशे, मा पडिसेहिते व दिपणे वा षवेसेज वा ओभासेज वा, एवं खलु भिक्खुस्स
॥३३७॥

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