Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 352
________________ शय्याध्य| यनं उ०२ श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥३५०॥ ANIRUP ARTS | तंमि चेव दिवसे तओ ण एति, एवं सव्वं, निरंतरं-अविरहिता, साहूण तत्थ दोसा, सीते सड़ी तीए वा परिकम्भ, च्छावणं संजयट्ठाए भवति, इदाणि भण्णति अपकिरिया, कालाइकंता जहिं स मासकर्ष वासावासं वा करेति, अतिकता पाइणं वा पडीणं | वा दाहिणं वा उदीणं वा दिसा पन्नवगकप्पत्ति, कालाक्षरा रजादिसा वा गहिता, अट्ठो भणितो एव, णो सुणिस्संतो न सुद्ध-| आयारगोयरं सद्दहति, पुन्नफलं वसहीदाणस्स समणमाहणा अतिधिकिवणवगीमगा समुद्दिस्स, आएपणा णित्थरणं सिज्झत्ति वणि | वुस्मति, अहवा लोहारसालमादी, आयतणं पासंडाणं, अवत्थन्तिया बुद्धस्स पासे, देवउलं वाणमंतररहितं, देउलं वाणमंतरं सप| डिमं इत्यर्थः, सभा मंडवों, चलंती वा सा सवाणमंतरा इतरा वा, पवा जत्थ पाणितं पिजइ, पाणितगिह; आवणो सकुडओ, पणियसाला आवणो चेव अकुड', जाणगिह रहादीण वासकुडं, सा एगेसिं चेव अकुड्डा, छुहाकडा छुहा जत्थ कोहाविजति वा, दब्भा वलिजंति घिणंति वा छिजंति वा, वच्चओ पिजति बलिज्जति य, वज्झा वरत्ता, जा गड्डीणं दलिजंति, इंगालकम्म, एतेसिं सभातो भवंति, सुसाणे गिहाई, गिरि जहा खहणागिरिमि लेणमादी, कंदरा गिरिगुहा, संतिये घराई, सेलपाहाणघराई, उबट्ठाणगिह | जत्थ जावइओ उड्डावित्तु दझंति, सोभणंति भवर्ण, भा दीप्तौ, उव्वनंतेहिं उववत्ति, एमा अतिकता, सा दुसीलमंतत्तिकाऊणं एते आहाकम्ममि ण वति, अप्पणो सयट्ठाए कयाई, एतेसिं दोसा-अप्पणो अण्णाई करेमो इतराइतरेहिं कालातिकता, अणति कंता इमा अजा इतरा, एवं सेसावि अण्णतरा इत्यर्थः, पाहुडेहिं पाहुडंति वा पहेणगंति वा एगहुँ, कस्य ?, कर्मबन्धस्य, णिरतस्य पाहुडाई दुग्गतिपाहुडाई च अप्पसत्था सेवणाए सावजकिरिया, महावज्जा पासंडाण अट्ठाए एसा चेव वत्तव्बया, सावजा पंचण्डं सम तारजीनिकायस- णाणं पगणित २ एसा चेव वत्तव्यया, महासावजा एग समणस जातं समुद्दिस्स जावति गिहाणि वा महता छजीवनिकायस AIRAULIHIRAIL M ॥३५॥ HINDI

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