Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 354
________________ श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥३५२।। वा अण्णे वा गता, स्यणग्गहणा संविग्गो, सो गिहत्थो, मज्झो अस्मिन् भत्तिए, केषां एगता उक्खित्तपुव्या-पढम साहणं उक्खि- शय्याध्यवति अग्गे मिक्खं, मिक्खं हिंडताणं, 'थके थक्कावडितं', अभत्तए सालिभत्तं जातं मज्झाजातं 'मज्झ य पइस्स मरणं दिय यनं उ०३ रस्स मे मया भन्जा' उक्खित्तपुव्वा मा एतं चरगादीणं देह, परिभूतपुव्वतं अप्पणो भुंजंति, साहूण य देति, परिद्ववियपुव्वा अच्चणियं करेंति, तुरि पच्चाइतुं, मा मे से सञ्जातरो अगिण्हंतेण भत्तिभंग, अण्णपासंडावि जस्स भणिता तस्स अणुग्गहं करेंति, | एवं गेण्हणे दोसा, कत्थति पुण वसही दुल्लभा नो भिक्खा दुल्लभा, णो वसही एगत्थ भिक्खा, से एवं साहू उज्जुकडो उक्खा| यमाणो सम्यक् अक्खाति ण लज्जति, कम्मं बंधेणं पुच्छा, आस० गाहा, वागरणं, हंता सम्यक् भणति, ण लिप्पति कम्मबंधेण | | | इत्यर्थः, एते परसमुत्था दोसा, इमे आयसमुत्था वसहीदोसा, अतिरित्ता पट्ठिता ण अण्णतित्थिया एज्जा खुड्डाखुड्डि एव दुवारं | संनिरुद्धं, खुड्डुलगं वा, णिव्विताओ निरुद्धा साधूहि वा भरितिया, अहवा खुटुंतिया चेव भण्णति सण्णिरुद्धिया, एतासु दिवावि | ण कप्पति, कारणि ट्ठियाणं जयणा, राइविगाला भणिता, पुरा हत्थेण रयहरणेण हत्थोपचारं कुज्जा पच्छा करेज्जा, आवसियाणि सज्ज णिन्ताणं, पविसंताणं णिसीहिया आसेज्जा, के च दोसा?, समणा पंच, माहणा धीयारा, अहवा सावगा, भत्तं, छत्तगा | मे, वमेत्तए उच्चारादि, भंडयादि णिज्जोगो, सव्वं वा उवगरणं, अट्ठी आयप्पभिसिता कट्ठमयी, तिसिगा मिसिगा चेव, वलग्गहणा वत्थं वलयिणीदोसा, चंमए मिगचंमं, उदाहरणाओवा चमकोसं, उक्खल्लओ अंगुजट्ठा कोसए वा, चंमछेदणयं बज्झो दुवट्ठादी, साहू पवडमाणेसु य दोसा, पउरण्णपाणं अन्नत्थ णत्थि, वसही दुल्लभे य, अण्णतित्वियमादीसु जयणा, अणुवीयि अणुविचिंत्य, इस्सरो पभू सामी, स महिहिए पभु संदिट्ठो कामं जाव तव अम्ह य इच्छा, अहालंदं जहाकालं उदगवासासु अहा- ॥३५२॥

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