Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 370
________________ M अवग्रहसप्तकं श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥३६८॥ तेण भगवया पंचविहे उग्गहे परवेयवे, एवं पिंडेसणाणं सबज्झयणाण य| इत्यवग्रहप्रतिमाः समाप्ताः॥ सत्तिका वितिया चूला, दारा अणुपुब्बीए अहिगारा एगसरगा, उहाणे पगतं, तं पुवं भणितं लोगविजये, णिसीहियाए | छकं, णिसीयणं णिसीहिया, दव्वे कोंचफलेण पंको णिसियति, अहवा दयनिसीहिया वसही सज्झायभूमी वा, खित्ते जंमि खित्ते, | जत्तियं वा खेत्तं फुसंति, काले जंमिकाले जत्तियं वा कालं, भावे उदइयाई जेण भावेण अच्छति, सरीराओ उच्छलति-णिफिडवति तेण उच्चारो, स्रवतीति तेण पस्सवणं, कहं तमयाणमाणस्स ठाणनिसीहियं उच्चरणं वा संजमसोही भवति ?, उच्यते, मुणिणा छक्का यदयावरण, छक रूवे, रूवए द्रव्यस्य जो संठाणाकृतिरेव, तं रूवं जत्तियं खित्ते पिच्छति जंमि वा खेत्ते रुवं वणिजति, कालरूवं । अणादीयं अपजवसियं, जहा हरितं साद्धलं प्रावृषेण, तत्कालरूपं, भावतो वणं कसिणं जह भमरो कसिणोववेतो, सभावो वा जहा | कोहपरिणतस्स रूवं, कालगं मुहं, अच्छी य रत्ताणि भवंति, जहा रूवणेण दाइयं, अहवा 'रुट्ठस्स खरा दिट्ठी उप्पलधवला पसन्न चित्तस्स ।' तहा सद्दो जं दव्यं सद्दपरिणयं, जहा कंसताला घंटासदोवा, खेत्तसद्दे जतिए खित्ते सुवति, जहा वारसहि जोयणेहितो, | जंमि खित्ते सद्दो कीरइ, कालसहो जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजइभागो, भावसदो गुणेण कित्तियं, जहा उसभसामी पढमं जायो णरबई, धम्माण कलाविहीण विभासियव्वा, छकं परमं, तदन्नपरमाणु परमाणुस्स तद्दव्यपरो, परमाणु दुपदेसियस्स अन्नदव्यपरो अ, से दो सपंतीए द्विताण जे परित्ता तेमिं गाहेहि देहि वा, कम्मपरो परमाणूतो दुपदेसिओ, जीवो पोग्गल| विसेसा, परो दुपदादि, एवं अन्नेवि, जयमाणस्स जं परो करेति, कंठयं । इदाणि सव्वेसि सुत्तालावगा-से भिक्खू वा भिक्खुणी | वा अभिकंखेज टाइत्तए, सअंडादिसु ण ठाएजा, अणंतरहिताए पुढबादी जाव आइण्ण०, सलिक्खा आलावगसिद्धा, गामादिसु INATIONS वाPUURATION ARTIHIMPIRED m TIM ८॥

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