Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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८ पिंडैषणा
श्रीआचारांग सूत्र
चूर्णिः ॥३४०॥
तिला भुज्जितगा पाणीते छुभन्ति, तुसोदए तुसिता भुजियगा छुभंति, जवोदए जवा सुज्जियगा छुभंति, आयाम अवस्सावणं, | सोवीरगं अंबिलं, केइ भणंति-कोसलाए परिसित्तियं, सुद्धवियर्ड संसट्ठपाणगं, निज्जा वा अहिगारो, अहुणा धोताईणी णो पडि
गाहिज्जा, इमं पुण सुत्तं चिरधोतादिसु-से पुवामेव आलोए, पडिग्गहो एवं मत्तओवि गिहिभावणेण वा वक्खेवे चकिया फुडा | चेव पडिगाहेज्जा । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पाणगं अणंतरहितादिसु, उद्धटुत्ति उद्धृत्य, णिक्खितं ठवितं, उदउल्लेण | वा ससिणिद्वेण वा सकसाएण वना(ल्ला)दिणा कसाएणं, सो य सचेयगोय होज्जा, मत्तेण भायणेण, सीतोदएण संभोएत्ता भासेचा | णो पडिगाहेज्जा, एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा० सामग्गियं । सत्तमा पिंडेसणा॥ | संबंधो इह पाणगं, अंबगाई धोवेंति अंबसालस वां संसदपाणगं खोल्लविसए अंबगाणि फालेत्ता सुकविज्जति तेसिं धोवणं | अंबपाणगं, एवं अंबाडगकविमाउलिंगमुद्दियादालिमखज्जूरनालिएरकरीरकोलआमलगचिंचादीणं सव्वेसिं धोवणं, रसमीसं वा अट्ठियं अढिल्लओ, सह अद्विएणं सअट्ठियं, सह कणुएण य सकणुयं, कणुयं अट्ठिएगदेसए वा अतुस्सो कच्छो वा, बीतेण सह साणुवीयकं, छब्बकं दृसं वत्थं, वालं सउणीपरए वा, रएण वा, आवीलेति एकसिं, परिपीलेति बहुसो, परिसएति गालेति ण पडि०| आगंतारो मग्गो, मग्गे गिहं, अहवा यत्र आगत्य आगत्यागारा तिष्ठति तं आगंतागारं, आरामे आगारं, गृहपतिकुलं वा, परिव्यायगादीणं आवातो परियावसतो, अन्नगंधाणि कलयसालिमादीणं, पाणगंधो कप्पूरपाडलावासितादि सुरभिगंधो चंदणागुरुकुंकुमादीर्ण आसायपडिता भाणमुहं, णो तत्थ सिद्धा, सालुगं उप्पलकंदगो, बिरालिया गोल्लविसए वल्ली, पलासतो सासवसिद्धत्थपालिता, आमयं अरद्धं, असत्थपरिणतं सचित्तं, पिप्पली पिप्पलिमूलं, मिरियं मि २, सिंगबेरं सुंठी अल्लगं वा, चुण्णे एतेसिं चेत्र,
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॥३४०॥
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