Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 337
________________ श्रीआचा रांग सूत्रचूणिः ॥३३५|| मारिजेज, मंसखलं जत्थ मंसा सुक्खाविति सुक्खस्स वा कडवल्ला कता, एवं मच्छगाणवि सामाणो, तणखलाई काउं सुक्खावेत्ता विभयं भत्ताई करेति, पहेणं आहेणं वा तित्ताणं, वधुंया हिजति एहेण वधूइत्ता, अहवा जं आणिञ्जति तं पे हिणं (पहे) हि, हिंगोलं करडयभत्तं, सम्मेलो विवाहभत्तं, पच्छाकम्मेण वा मित्ता वा कति भत्तं काऊण, अहवा गोड्डीभतं संमेलं, हीरमाणं, अहवा कीरति अंतरा, बहुपाणा पीपीलगसंखणगईद गोब गईंदजुत्रादि पुच्वत्ताणि, बहवो समणमाहणा उवागता गमिस्संति पच्छा अत्यर्थः आइण्णा अच्चाइण्णा चरगादीहिं नो पन्नस्स प्रज्ञायां प्राज्ञः तस्य प्राज्ञस्य अच्चाइण्णत्तणेण ठाणादी ण सकति काउं, विसयपवेसा दुक्खं, | लोगो य भणेज-अहो जिम्मिदियं अदंतं साहूणं, सो एवं पंच्चा रायमिसेयाईसु चेत्र अप्पाणादिसु अप्पादिन्नासु निकारणे ण कप्पति, गिलाणणाणकारणादिसु कक्खडखेत्तवत्तच्या, असंथरणे वा एगदिवस अणेगदिवसियासु गिण्हेजा, तत्थ य वेलाए चेव पविसिञ्जति, अवेलाए उस्सकणं पवत्तणदोसा । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा खीरिजमाणासु संजयट्ठाए यात्री दुहितुं दिजा, उवक्खडिजमाणे संजतट्ठाए किंचि छडन्ती उबक्खडिज, अप्पहितं ण तात्र दिजति, संजयट्ठाए पवत्तणं होजा, एते दो से जाणिता | दो गाहावइकुलं सेत्तमादाण आदायं नाणं इह ज्ञात्वा, एगंतमत्रकमिज्जा अणावादमसंलोए, खीरियासु उवक्खडिते, पज्जू हियं पडितं, एते दोसाण - णत्थि पविसिञ्जा, भिक्खणसीला भिक्खागा, नामगहणा दव्यभिक्खागा, एगेण सव्वे, एवमवधारणे, आहंसु कंठा, समाणा वृडवासी, वसमाणा णवविकप्पविहारी, दूतिजमाणा - मासकप्पं चउमासकप्पं वा काउं संक्रममाणा कहिंचि गामे |ट्ठिता उडुबद्धे अहव हिंडमाणा, माइट्ठाणेण मा अम्हं किर विसमो भवतुत्ति पाहुणए आगते भणति खुड्डाए खलु अयं० वमती खुड्डगा, तेसिंपि भद्दतरा देतगाई णत्थि, थोत्रा भोजाणि, भंडिहिं वा अकंना, से हंता हंतामंत्रणे, पुरसंयुता मातापितादि, पच्छा पिंडेपणाध्ययनं ॥ ३३५॥

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