Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचा रांग मूत्र
चूर्णिः ॥३३३॥
पिंडेपणाध्ययन
भणिता, इमे अन्ने-पवयणादी, गाहावई अगारिओ वा, परिवाया कावलियगादी, परिवायाओ तेसिं चेव भोईयो, वासगिम्हरीकादीसु संखडीसु, एवंपि अगारीओवि, माहेस्सरसिरिमालउज्जेणीसु एगभं एगवत्ता एगचरित्ता वा, सव्बंमि भवावा, सोंड विगडं च पिबंति, पादुः-प्रकाशने प्रकाशं पिवंति, रे प्रकाशे, पीवितं प्रकाशीभवति, भो! ति शिष्यामत्रगं, व्यामिश्रं नामा तेहिं पासंडगिहत्थेहिं, अहवा वे सुराओ, अहवा सिधुं व सुरं च अणुकंपया संजतं पाएज्जा, पडिणीययाय पाएज्जा जा उड्डाहो | भवतु, मत्तगदोसा गाएज वा नच्चेज वा वमेज या, मत्तेण य पडिस्सओ ण गविट्ठो, हुरत्था णाम बाहिं विगालो य जातो, को
वा मत्तेल्लगस्स देति, गतिए संतस्सवि, तेहिं चेव सम्मिस्सभावं पगतएल्लउ आपज्जेत, अन्नमणो णाम ण संजतमणो, सव्वेते विपरिया, स० सव्यओ णाम अचेतो आतपरउभयसमुद्वेहिं दोसेहिं, इत्थीविग्गहे वा विग्गहगहणं मत्तगपरीरवत् , तत्रापि ग्रहणं दृष्ट, किलीवो णाम नपुंसओ, एते गेण्हेज, पियधम्मेवि न देसो, किमंग पुण मंदधम्मे ?. एवं वा ब्रूयात्-आउसंतो! समणा एयाओ संसा विगालो रत्तीवि परिचरियन्वा, गामणियंतियं गाममब्भासं, कण्हुइ रहस्सितं कम्हिवि रहस्से, उच्छू अक्खाडे वा अनतरे वा| पच्छण्णे मिहुणस्स सहयोगे च, पवियरणं पवियारया, आउट्टामो कुब्बीमो, एगतीया कोई विधम्मोवि साइजेज, सातिजणा समणुजाणणा, अकृत्यमेतत् , ज्ञात्वा आदाणत्ता, सासंति विजंतो, प्रत्यवाया इह परलोगे य, तम्हा णो अभि० अण्णयरे संखडी णिसम्म, समत्तं धावति, उस्सुगभूतो सज्झायादीणि ण करेति, धुवा अस्थि णत्थि, होतीएवि लभो हुज वा ण वा, लब्भमाणोवि वेला फिट्टिजा, णो संचाएति-न शक्नोति इतराइतराई-उच्चनीयाणि जाणि पुवभणियाणि समुद्दाणतातं समुदाणियं, फासुगं उग्ग| मादिसुद्धं एसणीयं, एसियं फासुगमेव एसितं, वेसियं णाम जहा वेसिवाणुरूवं, विरूवत्थे रयणे वाण जोएति, केवलं कालिते,
INDRAMMARRIm
KaHAMMALHARIHITINA RAHIMIRMIRA P
॥३३३॥
ATANI

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