Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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पिंडैषणाध्ययनं
श्रीआचा रांग सूत्र
चूर्णिः ॥३३॥
सूतिता, अद्धमासितं वा उववासं काउं अवामसाए वा करेति भत्तं, मासितं पुन्निमाए, २३४५ छम्मासिए -अयणभत्तए उडूसिसिरतादिसु ऋतौ घृतो गुलो गोरसा साली य पउरा अहवा पदोसा, हेमंतसिसिरगिम्हे सत्तुगमादि, एवं जा मि उड्डुमि दिञ्जति, उडुसंधी दोण्हं उदणं संधी, परियट्टे हेमंतो वसंतो अहवा से उधु समत्ता, उक्खाओ खलिया, कुंभी कुंभप्पमाणा, कलसी गिह| कुंभे भरिजति, कलोवादी पच्छीपडिगमादी, सनिधी गोरसो, संणिचओ घतगुला, एत्थवि तच्चेव पगारा, अपुरिसंतरकडादी ण कप्यति, कुतो? विसुद्धा णो भत्तपाणा भंगा ४, दोस विसुद्धेसु गहणं, सेसेसु पडिसेहो, उग्गा जे सामिणो दंडधरा आसी, भोजा गुरुत्थाणीया, राईणा राइणो, खत्तिया इक्खागहरियसपसिद्धा, एसिता दरिसणा, वेसिता रंगोवजीविणो, गंडगा गामतित्तिवाहगा, कोहगा हरगाए कोट्टकीत्यर्थः, गामरक्खगा गामाउन्तगा, बोकमा लिताणंतिका, एवमादि अ, दुगुंछिता चंमारादी, तेसु फासुसगाणवियग्गहणं । समत्रातो-गोट्ठीभत्त, पिंडणिगरो-पितिपिंडो, इंदमहे इंदो, खंदो महासे गो, रुदो रुदमेव, मुगुंडो बलदेवो, णागा णागवलियाए, जक्खा आणंदपुरे सिद्धा चेव, मूले जहा देवणिम्मिते, चेइयं वाणमंतरं, रुक्खा पत्तव्योवगाणि कजंति, गिरि उजंताई, दरी उच्चयअंधारियासु, कप्पंजणगा दहणागदुमो, णदीए भमंतीए, सरे जहा भट्ठचरणे, अन्ने य सागारे, अन्नतरेसु वा विरूवपर० एगाओ वक्खाओ तहेव अपुरिसंतरकडं णो पडिगाहिजा जाव अह पुण जाणेजा दिण्णं जं तेसिं दायव्वं अह तत्थ ण भुजेजा, भुज पालनाभ्यवहारयोः, पभू वा पभुसंदिट्ठो वा पभू गाहावई आयरियगिलाणादीणं अलंभे वा सो देजा जाव | पडिगाहेजा। इदाणिं खित्तं-परतो अद्धजोयणं भिक्खाचरियं गम्मति गाम वा रण्णं वा चउद्दिसिं, जत्थ संखडी तत्थ अवराएवि जई जाइ, सा संखडी प्रतिज्ञातुं न कप्पति ! से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पाईणं पुरिमदिसाए वारेंतेवि जति तत्थ संखडी
॥३३॥

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