Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 331
________________ श्रीआचा रांग सूत्र चूर्णिः ॥३२९॥ से तमादाय गहणाय एगंतमवक्कमिजा, एगकाः एकान्ते, अहे आरामंसि वा २ अधित्ययं णिपातः अहग्गहणाऽगोयरे वा अंडगा | पाणा जत्थ णस्थि हरितोदगं उस्सा वा जहिं णत्थि, उत्तिंगा गद्दभा कीडियाणगरंवा, पणओ उल्ली, दएण मिस्सिता, मट्टिगा वा, मकडगा लूतापुडगा, तत्थ चेव कीडगा कीडियं च वा, तत्थ वा विगिचिता एकंसि, विसोहिया बहु सोहिया, लोगमहपोत्तियाए काए पमजेत्ता, ततो संजतगं मुंजेज वा पिएज वा जं चाएति २, ज्झामथंडिलं अज्झुसिरं सामितगं अद्वि किडे हिरण्णसुवण्णाईणं तत्थ खजगादि णिसिरिजति, वीहितुसेसुं कुंडगादिसु, ण उरणगादिसु संगुलिया, तत्थवि सत्तुगादि गोयमकरिसमच्छिगातो, णवगणिविसे पवेसे गामे दुल्लभथंडिले अबकरे परिदृविज्जइ पडिलेहिय २त्ता पमन्जित दरोगाढे द्रवसिणेहादि, अदरे सित्थादि, ततो संजतामेव परिद्वविजा, ओसहीओ सचित्ताओ पडिपुन्नाओ अखंडिताओ, सस्सियाओ परोहणसमत्थाओ, जहा | सालि, किल अतसितिलस्स तिवरिस पंचवरिसयं, अविदला कणाण विणा, अतिरिच्छच्छिण्णाओ उज्झिताओ, फालिताओ पुण तिरिच्छीछिण्णा, आहाविणा जीवेण तरुणिया, छिवाडी कोमलिया मग्गलिसंदातीणं, अणभिकंता जीवेहि, भन्जिता मीसजीवा चेत्र, एत्तो विवरीता कप्पणिज्जा, अववादेणं पिहुगा सालिवीहीणं, बहुरया जवाणं भवंति, भुज्झगा गोधुमाणं वुचंति, मंथु बोरादि अण्यो वा फला केति, मथिता-चुण्णिता, मथ्यतेति मंथु, चाउलं तंदुला चाउल्लालंव सुगिता विही सुकविता कूामिस्सिताओ तंदुला कणिगा| वा से, दुब्भजितं एकसि, ढुंब्भजितं अफासुगं, विवरीयं असई भजियं दुपकं तो कप्पणिजं । अन्नउत्थिया परिभहा(दा)ति, गारत्थिया धीयारादी, अन्नो वा गिहत्थो, परिहारितो साहू, अपरिहारितो पासत्थो उ, भावणा वयणेण जाणंति च अप्पाणं, इरियावहियादि विराहणा वियारे दवअण्णकण असती विहारे चट्टा वारउग्घट्टगादि, गामाणुगांमे थंडिलसंकमणअप्पमजणरागादियादिदोसा, ॥३२९॥

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