Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 322
________________ बसत्यलाभादि श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥३२॥ MEANING | पुच्चो, जेण उवस्सतो ण लद्धो तेण गामो ण लद्धो चेव भवति, कत्थति पुण उवसंकमंति पतिण्णं भिक्खट्ठाए वसहीणिमित्तं वा उवसंकमंतं (८९) जभणेज-गाममभिगच्छंतंति, अपडिण्णो णाम पए पए परीसहउवसग्गाणं उदिण्णाणं ण पडिक्खिया कायव्वा, कारणेण गाममणियंतियं गामभासते लाढा पडिनिक्खमेत्तु लूसेंति, णग्गा तुमं किं अम्हं गामं पविससि ?, लूसितित्ति पितॄति, एत्तो परं पलेहेति-एत्तो चेव परेण लेहेन्ति, भसणस्स च्छज्झाहित्ति पावं निकटते, जलाढा तारिसेण रूवेण तज्जंति, बुवंति ते तु| चिरु विघायण, तारिसे रूवे रजंति, सरिसासरिसु रमंति, तत्थ अन्नत्य वाहियपुबो, तत्थ दंडेण अदुवा अट्ठिणा अदु कुंतफलेणं (९०) दंडो मुट्ठी कहूं, फलमिति चवेडा, अध लेलुणा लेलू नाम लेटुगो, कवालं णाम कप्पर, उडिकवालं वा, हंत हंतत्ति हणेत्ता अण्णित्ता वढते, अन्ने कंदंति. भणितं-वाहरंति, अन्नेहिं पुण मंसाणि छिन्नपुवाणि (९१) केयि थूभातेणं उट्ठभंति थुक्करिति य, परीसहाणि लंचिंसु अदुवा पंसुणा अव किरिंसु पंसुणाइ कयाइ व करेंसु, धूलिए वा छारेण वा भरेंति, तहावि भगवंतो अच्छीवि ण णिमल्लिंति, एगे तु उच्चालइत्ता णिहणिसु (९२) केइ आसणातो खलयंति आयावणभृमीतो वा, जत्थ वा अन्नत्थ ठिओ णिसप्णो वा, केति पुण एवं वेवमाणो हणेत्ता आसणातो वा खलित्ता पच्छा पाएसु पडितुं | खमिन्ति, केरिसो य भगवं, वोसट्टकाए पणतासी उवसग्गेहिं अहियासे पणतो आसी, दुक्खाणि सारीराणि सीतउसिणमादीणि ताणि सहति, अपडिण्णो वुत्तो, सूरो संगामसीसेवा (९३) संगामअग्गं परेहिं संमादीएहिं विज्झमाणोविण णियत्तति एवं सो भगवं, रागं दोसं वा ण करेति, एवंपि बहुहिं उबसग्गेहिं कीरमाणेहिं तत्थ लाढेसु य तवे उवसग्गे वा सहमाणोरागदोसरहिते तेरसमे वरिसे पतेलिसे, पति पति सेवमाणो, जं भणितं भवति-सहमाणो, फरुमाई-ककसाई ओरालाई अचलत्ति परीसहो MAINARAISALMERIS |॥३२ ॥

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