Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचारांग सूत्र
चूर्णिः
॥३१७॥ ८ उप० ३ उद्देशः
मासाओ, पवायति भिसं वायति, तंपि एगा अण्ण तिथिया वमहीओ निवाता करेंति, पाउरणाई फुफगाई, उप्पं आहारयं, चुण्णं || निवातावएत्थं मुंजंति, जतिवि कुंचियाविज्झे(छिद्दे)ण सीतं एति तेणेति भणति-दुक्खाविओ, जेवि पासावचिजा तेविण संजमे रमंति,
भावः |संघाडीओ (७८) वत्थाणि कंबलगादि पहिरिस्सामो पाउणिस्सामो, समिहातो कट्ठाई, ताई समाडहमाणा गिहत्थअण्णउत्थिया, एवं सीतपडिगारं करेमाणो तहावि दुक्खं सीतं अहियासेइ, पिहिता पाउया वा.पस्सामो अतिव दुक्खं हिममयं पएसं (७९) तहिं काले भावेति अपडिपणे बसहिं पडुच्च ण मए णिवाता चमही पत्थेयव्या, अहिगदाएवि अहियासेति, दविते पुन्यभणिते, अह अञ्चत्थं सीतं ताहे णिक्खम एगता राओ वसहीओ रातो-राईए मुहुत्तं अच्छित्ता पुणो पविसति रासभदिहतेणं, पृणो य वसतिं च | एति, स हि भगवं समियाए सम्ममणगारे, न भयट्ठाए वा सहति, एस विही अणुकतो (८०)स इति जो भणितो, विहाणं विही, अणु पच्छाभावे, जहा अन्नतित्थगरेहिं कतो तेणावि अणुकतो, पूर्ववत्, एतस्स सिलोगस्स बक्खाणं कायव्यं, पढमुद्देसए इति ।। | उपधानश्रुतस्य द्वितीय उद्देशकः परिसमाप्तः ।। | उद्देसाभिसंबंधो भणितो, चरिता पढमुद्देसए, अज्झयणे तस्स तया, वितिए सेजाविहाणं भण्णति, णिसीहियाहिगारो संपयं, सो जहा सामायियणिज्जुत्तीए भगवं अच्छारियदृष्टान्तं मणमा परिकप्पेऊणं लाढाविसयं पविट्ठो, एत्थेव निसीहियापरीसहो अधिकृतो, तत्थ निसीयणं णिसिजा, यदुक्तं भवति-निसीहियासु बसतो उबसग्गा आसी, तंजहा-तणफास सीयफासं तेउ| फासे य दंसमसए य (८१) तरतीति तरणं, तत्थ पहुंजयमादी तणा लगंडसीतफासेण ठितं विंधति, णिसन्नं वा कडगकिसासरदम्भादि, सीतं पुण पव्ययाइन्नदेसे अतीव पडति, तेउत्ति उदंति, आतावणभूमी जं व हालदामाए अग्गिमेव आसी, उल्लु

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