Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचा रांग सूत्र
चूर्णिः ॥३०६॥
खमणकाल, ज भारमादि. भावे कम्यक भंड १ कत्थ पति, परस्थ का
जा इत्थी सा इत्थीमेव, ण यऽनो, इस्सरो स इस्सरो एव, जो मुणी सो मुणी चेव, चउरासीइ य सयसहस्सविहाणा कम्मेहिं सर्वयोनिअभिसित्ता सत्ता कंमणा कप्पिता पुढो बाला कप्पिता, यदुक्तं भवति-उववादिगे, वुत्तं च-छसु अनतरंसि कप्पति, पुढो णामकत्वाद पिहप्पिहं, जं भणितं होति-पत्तेयं पुणो पुणो वा, दोन्नि आगलिता बाला, ते एवं कम्मेहिं कप्पिते, भगवं च एवमण्णासिं (५६) च पूरणे, एवमवधारणे, एवं अनिसित्ता, जं भणितं भवति-अणुचिंतेत्ता, गिहवासे अवहिनाणेण पब्बइए चउहिं नाणेहि अणिसित्ता, किमिति निक्खमणकालं, जं भणिता होति-अह साभिवे दुवे वासे जाव कम्मुणा कप्पियत्ति, इमं च अन्नं अणिसेत्ता सोवचिते हु लुप्पती वालो दबउवही रन्नादि. भावे कम्ममेव उवही, सह उवहीणा सोवही, इह परत्थ य लुप्पति-छिजति | | भिजति वहीजति मारिज्जति, इहं ताव 'कतिया वच्चति सत्थो ? किं भंडं ? कत्थ ? कित्तिया भूमी? । को कयविक्कयकालो ? णिन्धि सति को ? कहिं ? केण? ॥१॥' मणूसा लुप्पंति, चोररायअग्गिमादीहिं आलुप्पति, परत्थ कम्मोवहीमादाय नरगादिएसुलुप्पति, कम्मग्गाओ लुप्पति, मोक्खसुहायो य लुप्पति, अहवा इमं अणिसित्ता-जे पवइयावि संता कथं विणावि कारएहिं जीविकाइएहिं जीविस्सामो ?, मंसादिणिट्ठभोयणेण वा अचंतेण वा, तेसु उववज्जमाणो, सो य उववज्जमाणो बालो, सोयविधिया माइट्ठाणिउ, | तंजहा-सयं ण पयामि, अन्नेहिं पाययामि, एवं सतं ण छिंदामि छिंदामऽण्णेहि, एवं लोगरंजणणिमित्तं सोवि, जं भणीतं-तं | मोहकमोहिमादाय नरगादिभवेसु लुप्पति पक्कति य, ते पेहियव्या कारण, जहा णच्चा सोवहियदोसे य णच्चा, इमं च अन्नं णच्चा, तंजहा-कम्मं च सबसो णच्चा कम्म अविहं, तं सबसो सवपगारेहिं पदिसठितिअणुभावतो णचा, जो य जस्स बधहेऊ कम्मफलविवागं च, पडियाइक्खे पावगं भगवं हितजुयो पञ्चक्खाति पावगं हिंसादि, अणवजो तवोकम्मादि, ण तं पञ्च-10॥३०६॥
याचि संता कथं
तसु उबवज्जमाणो
पाययामि,
ए
मादाय ना

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