Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 311
________________ परपात्रनिषेधादि श्रीआचारांग सूत्र• चूर्णिः ॥३०९|| णासेवितंपि, तहा सपत्तं तस्स पाणिपत्तं, सेसं परपतं, तत्थ ण भुजितं, तो केइ इच्छंति-सपत्तो धम्मो पण्णवेयबुत्ति तेण पढमपारणं परपत्ते भुत्तं, तेण परं पाणिपत्ते, पगारो तहेव, अतिकतं वावि, गोसालेण किर तंतुवायसालाए भणियं-अहं तव भोयणं आणेमि, गिहपत्ते काउं तपि भगवता निच्छितं, उप्पण्ण नाणस्स लोहजो आणेति-धन्नो सोलोधजो खंतिखमो०, किं तत्थ ताण अडियवं?, भणियं-'देविंदचकवट्टी मंडलिया ईसरा तलवरा य । अभिगच्छंति जिणिदं गोयरचरितं ण सो अडति ॥१॥ छउमत्थकाले अडियं, परिवजिताण ओमाणं सबओ वज्जिता परिवजिता, ओमं माणं करेति, ओमाणं जं जस्स दिजति तं जणं दिजति, सम्वेहिं दुपदचउप्पदादीहिं आहारकंखीहिं संतेहिं पडिपुन्नेहिं चरंति, आउयखंडंणा संखडी, सयट्ठाए परेहिं उवखडितं, जा व णाम संखडी अप्पातिण्णा होजा, मिक्खायरा जत्थ णत्थि तत्थ गच्छति, असरणाएत्ति ण ता सरति हिजो होहिति | परसुए होहितित्ति, अहवा पडिवाडी, ण घराणि वा मोतुं गच्छति, जुण्णा. संखडी, अहवा संखडित्ति ण उस्सुगभूतो भवतित्ति, एत्थं मणुन्नं पणीतं बहुयं च लमिस्सामित्ति ण सरति, अहवा सरणमिति गिहं, तं तस्स नत्थि असरणो, जइवि णाम छमासपारणाए संखडीए असंखडीए वा मणुण्णं भत्तपाणं परं लभति, तत्थवि मायण्णे असणपाणस्स (६१) मत्तं जाणतीति मातण्णो, कस्स ?, असणपाणस्स, भणियं च-'जह सगडक्खोवंको कीरति भरवहण' जतिवि भगवओ अणुत्तरओरालियसरीरलद्धिजुत्तो ताण अजिण्णादयो दोसा भवंति, तहावि सो भगवं निवारणत्थं सुभज्झाणादिकिरियत्थं च मायण्णे असणपाणस्स, नाणुगिद्धे रसेसु अपडिपणे गिहवासेवि ताव भगवं रसेसु अविम्हितो आसि, किमु पव्वजाए ?, रसा तित्तादि, अपडिण्णे ण तस्स एवं पडिण्णा आसी जहा मते एवंविहा भिक्खा भोजा ण वा भोइयन्या इति, तत्र अभिग्गहपइण्णा आसी जहा कुम्मासा मए ||३०९॥

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