Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 307
________________ श्रीआचासंग मूत्र चूर्णिः ॥३०५॥ से अभिण्णायदंसणे संते स इति सो भगवं छउमत्थकाले ग्वातिते सम्प्रदरिसणे, दरिमणे य सति णियमा नाणं अत्थि, तं च पुव्यगइयस्स भगवतो चउब्धिह, मणपञ्जवनाणे य सति णियमा चरितं, अतो दरिसणे गहणं तज्जातीयाणं, संतेत्ति विज्जमाणे, केइ ३ति खओवसमियं सम्मईसणं तस्स आसी, तं च संत, जो एवं भगवं गिहवासे व सीतोदगादि छप्पि काए| दोन्नि साधिए वासे अभोच्चा णिक्खंतो सो कहं निक्खंतो ते आरभिस्सति ?, अत एव वित्थरा वुचति-'पुढवि आउंच'(५३) कंठयं, पणतो णाम उल्ली अणंतकायो, सो जीवत्तं प्रति दुधिभावो अतो तग्गहणं, तेण जो पणगमवि परिहरिहिइ सो कहं वत्तजातिवुद्धिआहारमरणधम्माणं वणस्सतिं न परिहरिस्मति?, अतो पणगग्गहणं बीयग्गहणं च, हरियाणि तु वत्तलिंगाणि, वणस्सइभेददरिसणत्थं च पणगादिगहणं, एवं पुढविकायियादि, पुढवीभेदो भाणियब्बो, तसा बेइंदियादि, सब्बसो पगारेहिं सुहुमबादरपज्जत्तगादी व भेदे णचा उज्झिता 'एयाणि संति पडिलेहे' (५४) एयाइंति मागहामिहाणाण एताई कायाई, संतीति विज्जंति, यदुक्तं भवति-ण कयाइ विज्जति, कयाइ न विज्जंति, आह-'इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढयी सव्वनीवहिं जढपुच्चा सधजीवेहिं जढा ?, गोयमा ! इमा णं रयणप्पहा पुढवी सयपुब्वे (जीवे)हिं जढपुया, नो चेव णं सन्यजीवेहिं जहा, एवं से सासुवि', अतो संतिग्गहणं, चित्तमंताणि से अभिण्णाय चित्तमिति जीवस्स अक्खा, चित्तं तेसिं अत्थीति चित्तमंता, पुढ विकाइयादीणिवि कायाई, स इति तित्थगरो छउमत्थकाले, अभिमुहं णचा अभिण्णात, यदुक्तं भवति-ण विवरीतं, परिवजियाण विहरित्ता इति संखाय से महावीरे एतं कंठयं, अह थावरा तसत्ताए ( ५५ ) तसजीवावि थावरत्ताए, यदुक्तं भवति-उपवजंति, अदुवा सव्वजोणिया सत्ता अदुवत्ति अदुवसदा अवज्ज, सो सुहदुहउच्चारणत्ता सम्बासु जोणिसु उववज्जति सबजोणिया, ण तु जहा लोइता AUSTRALIMITISHARIRIND HIRAMEHI MHASTRIANDERINIRUPARTUPTOP Palmin IITBHIDAII IHIRITHMEENABRARD IITDADAHARIES ॥३०५॥

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