Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 306
________________ श्रीआचारांग सूत्रचूर्णिः ॥३०४॥ प्रासुका. हारादि | तं?, जं भगवं अपरिमितबलबीरियपरक्कमो पब्धइयो स इंदियदमं कृतवान् , सो भगवं आघवति जो फासुयाहार एवासी, कह?, तस्स हि अट्ठावीसतिबरिसस्स अम्मापियरो कालगयाई, तेसि मरणे सो समत्तपइन्नो भूतो, जणो ण देइ, तेहिं णातखइ(त्ति)एहिं विन्नवितु-भगवं ! खये खारावसेगं मा कुरु, पच्छा भगवं उवउत्तो, जइ अहं संपयं चेव णिक्खमामि तो एत्थ बहवे सोगेण खितवत्थादि भविस्संति, पाणा चइस्संति, एवं ओहिनाणेण णचा भगइ-केचिरं अच्छामि भणह ?, तेहिं भण्णति-अम्हं परं विहिं संवछरेहिं गयदेविसोगा णासिजंति, तेण पडिस्सुतं, ताहे भणइ-तता नवरं अच्छामि जति अप्पच्छंदेण भोयणातिकिरियं करेमि, तेहिं सामत्थियं, अतिप्तयरूबंपि ता से किंचिकालं पेच्छामो, तं तेसिं भगवया वयणं अन्भुवगर्य, सयं च णिक्खमणकालं णचा, | अवि समहिते दुवे वासे (५२) अच्छइत्ति, अन्नतरे जम्हा ते तिव्वसोगे संतत्ता मा भू, मच्चुवसं गता भविस्संति, अह तेसिं तं अवत्थं णच्चा साधिते दुवे वासे वसतीति, दुवे वरिसे सीतोदगं भावओ परिचतं न पुण पिबीहामि, जहा सीतोदगं तहा सव्वाहारं सचित्तं अभोचा-अपीत्ता, अपिइत्ता इति वत्तव्ये जाणावेति अन्नपि सचेयणं अभोचा, ण य फासुतेणविण्हातो, हत्थपादसोदणं तु, फासुएणं आयमणं, सबसचेतणाहारपरिचागे सति दुपरिहरं उदगमितिकाउं तेण तस्स गहणं, इतरहा हि सो पंचवि सवेतणे | काये परिहितवां तिविहकरणेणवि, परं णिक्खमणमहाभिसेगे अफासुएण हाणितो, जहा पाणाइवायं परिहरियव्वं तहा मुसावायंपि अदत्तादाणं मेहुणं परिग्गहं राईभत्ताणिवि, ण य बंधवेहिवि अतिणेहं कृतवां, ततो वुचंति एगत्तिगते पिहितच्चा एगत्तिगतो णाम ण मे कोति णाहमवि कस्सइ, पिहिता अचाओ जस्स स भवति पिहिताः , अच्चा पुधभणिता, सरीरं वा, तं पंचेंदियसमुदितो, मोरागदोसोदयं प्रति पिहितो, कायवायमणगुत्तोबा, भावअच्चाओवि अपसत्थाओ पिही ताओ,रागदोसऽणलजाला पिहिता, INSPIRE ma NilamAHINSE ॥३०४॥

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