Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचा रांग सूत्रचूर्णिः ॥२९१॥
जति पाणा देहं भक्वेंति मया णिसमिति एत्थ किं मम अवरज्झति ?, अंतरं वा तेसिं, अतोरि ण णिवारते, ठाणाओ णवि | उन्भमेति दव्वठाणं सो चैत्र ओवासो, भत्तद्वाणं भत्तपरिण्णा, विविहं उन्ममे विउभमे, सो एवं भावठाणाओ अचलितो भवति, जतो अवसव्वेहिं विचित्तेहिं अवसतीति अवसन्त्रा विसयकसाया हिंसादयो य विचित्ता-मुत्ता, अहवा विरूवप्पिहभावो, विचितेहिं अवसव्वेहिं अमिलितेहिं पमाणे अहिपासपति पमाण इति अमएणेत्र सिच्चमाणो खुहप्पिवासिएहिं परीसह उवसग्गेहिं मिलायमाणे छिनमाणे वा देहित्ति तो बसे, गवि कायावायामणेहिं तिहिं तप्पति अहेयासेजत्ति-सहिज, कम्मक्खयत्थं कंमगंथेहिं विचित्तेहिं (२७) दव्वगंथो सरीरवत्थपत्ताति भावे रागादि, आउकालस्स पारते आउकालस्स पारगो पइण्णापारगो य जाब चरिमा उस्सारणिस्मासा सिद्धिगमणं वा देवलोगउववातं, भत्तपच्चक्खाणं वृत्तं । इदाणिं इंगिणिमरणं बुच्चति, परिहियतरागं च एतं मिसं गहियतरं पग्गहियतरं भत्तपञ्चक्खाणाओ भारिततरं पूइततरं च दुःखतरं कस्स ? - दवियस्स वियाणओ रागदोसरहियस्स दवियस्स सुट्ट आदितो वा आहिते सुवाहितो, पवज्जा सिक्खावय अत्थगहणं च०, सोवि ता परिकम्मं करिता उवगरणादिउवहिं चइत्ता थंडिलं पमजित्ता आलोइयपडिकंतो क्याणि आरुभित्ता चउच्चिहं आहारं पञ्चक्रखाय संथारारूढो चिट्ठति, सयमेव चंक्रमणाकिरियं करेतित्रि सो, आयविजं पडिगारं ( २८ ) सयमेत्र उट्ठेति निसीयति चंक्रमणं वा करेति, आयविजं नाम नो तं असुहीभूतं अन्नो कोई उट्ठवेति णिसियावेइ वा उच्चारपासवणभूमिं णेति वा आणेति वा, पडियरणं पडियारो गायस्स आउंटणपसारणगमणागमणादि विजहेन निहा तिघा त्रिविहं २ जहिज विजहिज, तिहा २ योगत्रिककरणत्रिकेण, केरिसए थंडिले णिवञ्जति ?, भन्नति - हरितेसु ण णिवज्जेजा (२९) सयमेव थंडिलं पडीले हित्ता गंतुं तत्थ णिविञ्जति,
उद्भ्रमवर्जनादि
॥२९१ ॥

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