Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 299
________________ उद्देशार्थाधिकाराः श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ८ ब्रह्म ॥२९७|| परमं सिद्धं पहाणं भवति, जं भणितं-जाणेत्ता जह विही विमोक्खतीति विमोक्खं, अण्णतरं णाम तिण्डवि एतेसिं अनतरं, अणु|पालिअंति इच्चेयं विमोहायपयणं एगतियं च अचंतियं च हितं सुहं आवकहितं परहितं मेति एवं धु(बु)वामि, तित्थगरोवदेसाओ, ण सेच्छातो इति ॥ आचारचूाँ सप्तममध्ययनं विमोक्षायतनं नाम परिसमाप्तं ।। अज्झयणाभिसंबंधो जहा णिज्जुत्तीए पढमे अज्झयणे वुत्तो, तंजहा-कयरेण इमं सुयखंधं प्रणीतं ? केण वा एते गुणा अणुचरिता जे अडसु अज्झयणेसु उत्ता?, तं पुच्छ(वुन)तिवद्धमाणसामिणा भगवया, एस द्वितकप्पो चेव सव्यतित्थगराणं जेण बंभचेराणं नवमे अज्झयणे तवोकम्मं वण्णेति जं अप्पणा अणुचिण्णमिति, जं च साहूहिं अणुचरियव्यमिति, तत्थ गाहा-जो जइता तित्यगरो' ॥२७५।। कंठणं, चत्तारि अणुयोगदारा वण्णेत्ता दुविहो अत्थाहिगारो, अज्झयणे ताव चउहिवि उद्देसएहिं तवोकम्मेहि अहिगारो बद्धमाणसामिणा य, उद्देसत्थाधिगारो इमो-चरिया १ सेजा २ यं परीसहा य ३ आयंकिते तिगिच्छाए ४ ॥२७६।। तत्थ पढमए उद्देसए चरिया वणिजति जहा सा चरियव्वा, बितिए सेजाओ वण्णिजंति जारिसियासु सो भगवं वसिताइओ, ततिए | उवसग्गा वण्णिजंति, चउत्थे ओमोदरिया, जं च आहारं भगवं आहारियमो, णामणिप्फण्णे उवहाणसुतं, तस्स णिक्खेवो-नाम | ठवणुवहाणं० गाहा ।।२८०।। दव्बुवहाणं वइरित्तं उवहाणं सयणिजस्स एगतो दुहतो वा, निरुवहाणो उत्तंभयंति, आदिग्गहणा | उवविट्ठस्सवि, भावोवहाणं चरित्तस्स सेजाए, बाहिन्भंतरो तवो, पंचमहत्वयसिजाए बा, जतो य एवं नाणदंसणचरित्त अभिगमणं-अभिगच्छणं, जं भणितं-करणं, तवसा को गुणो?, भण्णति-जह खलु मइलं वत्थं० गाहा ॥२८२।। कंठथं, तस्स पुण भावोवहाणस्स इमे एगट्ठा नामधेजा भवंति, जं वा तेणं भावोवहाणेण वुचंति एगडियाणि, तंजहा -'उवहणण'गाहा ।।२८३॥ animalsammaNaIIINDIANRAIDUNIANP MAHINDI nall

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