Book Title: Abu Jain Mandiro ke Nirmata
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 22
________________ निमित्तसें घोडा चोंक पडा और बहुत प्रयत्न करनेपर भी विमल कुमार उसे संभाल न सका । दैवयोग सामने एक स्त्रियोंका मंडल श्रीपंचासराजीके दर्शन कर अपने अपने घरोंकी तर्फ आ रहा था, और एक तर्फ दामोदरमंत्री की पालखी आरही थी, घोडा वश न रहा, कूदकर विषमगतिसें उन स्त्रियोंकी तर्फ दौडा, स्त्रिये अपनी जान बचाकर इधर उधर भाग गई । दामोदर मंत्री तो पहलेसें ही श्रावकवर्गपर चिडे रहते थे, जब उन्होंने इस घटनाको खुद अपने सामने देखा तो उन्होंने पालखी वहां ही ठहराली और क्रोधमें आकर बोलेअरे विमल! आम बाजारोंमे किसी भी तरहका खयाल न रखकर घोडे दौडाने यह तुझे किसने हुकम दिया है ? इस तरह राहदारीके रस्तेपर आते जाते लोगोंको त्रास देनेके लिये ही वेदरकार होकर घोडेपर चढकर बाजारमें फिरना, और मनमें आवे वैसे घोडेको दौडाना यह तुझे विलकुल उचित नहीं है। याद रखना यह तेरी उद्धताई जहांतक महाराजाके कानतक नहीं पहुंची वहांतकही यह तूफान तुं करसकता है, परन्तु अब अन्यायकी खवर महाराजा साहिव' तक पहुंचानी पडेगी। दरहालतमें प्रत्यक्षरूपसे इस बर्तावमें विमलकुमारकी भूल भी मालूम पडती थी, तोभी इस अनुचित घटनाको उसने जान बूझकर उपस्थित नहीं किया था। उसका हृदय निर्दोष था, वह वीरमंत्रीका लडका था, उसके पिताके मंत्रीपद भोगते हुए वह राजकुमार न होकरभी महाराज भीमदेवकी गोदमें खेलाहुआ था । .

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